बेहतर व्यवसाय हो सकता है मछली पालन : ओपी वर्मा
कृषि विज्ञान केंद्र सोहना स्थित खरेला फार्म पर शनिवार को मछली पालकों के लिए प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। जिसमें मछलियों की प्रजाति और उसके पालन के तरीके बताए गए। कृषि विज्ञानियों ने कहा कि कम लागत में मछली पालन बेहतर व्यवसाय हो सकता है इस तरफ किसानों को ध्यान देने की आवश्यकता है।
सिद्धार्थनगर : कृषि विज्ञान केंद्र सोहना स्थित खरेला फार्म पर शनिवार को मछली पालकों के लिए प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। जिसमें मछलियों की प्रजाति और उसके पालन के तरीके बताए गए। कृषि विज्ञानियों ने कहा कि कम लागत में मछली पालन बेहतर व्यवसाय हो सकता है, इस तरफ किसानों को ध्यान देने की आवश्यकता है।
प्रशिक्षण में मछली पालकों को प्रदर्शन के जरिये रोहू, भाकूर, ग्रास, कार्प प्रजाति करीब 2000 अंगुलिका साइज मछलियों का प्रदर्शन करते हुए उसे पास स्थित तालाब में पालन के लिए डाला गया। वरिष्ठ विज्ञानी एवं अध्यक्ष डा. ओम प्रकाश ने बताया कि इन मछलियों का बीज इंस्ट्रक्शनल फिश फार्म कालेज आफ फिशरीज आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय से लाकर डाला गया। उन्होंने कहा कि भाकूर (कतला) मछली शीध्र बढ़ने वाली प्रजाति है। सघन मत्स्य पालन मछलियों इसका महत्वपूर्ण स्थान है, तथा प्रदेश के जलाशयों एवं छोटे तालाबों में पालने योग्य है। एक वर्ष के अंदर यह एक से 1.5 किलोग्राम तक वजन की हो जाती है। यह खाने में अत्यंत स्वादिष्ट तथा बाजारों में ऊंचे दाम पर बिकती है। रोहू का मांस खाने में स्वादिष्ट होने के कारण खाने वालों को बहुत प्रिय है। भारतीय मेजर कार्प में रोहू सर्वाधिक बहुमूल्य मछलियों में से एक है, यह अन्य मछलियों के साथ रहने की आदी होने के कारण तालाबों एवं जलाशयों में पालने योग्य है, एक वर्ष की इसकी अवधि में 500 ग्राम से 1 किलोग्राम तक वजन प्राप्त कर लेती है। स्वाद, सुवास, रूप व गुण सब में यह अव्वल मानी जाती है जिसके कारण बाजारों में यह काफी ऊंचे दामों पर बिकती है। कृषि विज्ञानी फसल सुरक्षा डा. प्रदीप कुमार ने कहा कि किसानों को मछली पालन की तरफ भी ध्यान देना चाहिए, इसके माध्यम से वह अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बना सकते हैं। डा. एस एन सिंह, डा. मारकण्डेय सिंह, विजय यादव, जगत यादव आदि उपस्थित रहे।