गोरखपुर में पहले बाप, फिर बेटे ने कोरोना से तोड़ा दम- अर्थी को कंधा देने भी नहीं आया कोई

गोरखपुर में कोरोना से पहले पिता फिर पुत्र ने दम तोड़ दिया। करीब छह छह घंटे तक पुत्र का शव घर पर पड़ा रहा। उन्हें अर्थी देने के लिए कंधा तक नहीं मिला। कोराना का खौफ ऐसा कि पड़ोसियों ने अपने दरवाजे तक बंद कर लिए।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Publish:Sun, 18 Apr 2021 09:17 AM (IST) Updated:Sun, 18 Apr 2021 07:06 PM (IST)
गोरखपुर में पहले बाप, फिर बेटे ने कोरोना से तोड़ा दम- अर्थी को कंधा देने भी नहीं आया कोई
गोरखपुर में कोरोना से मौत के बाद बाप बेटे को कंधा तक नसीब नहीं हुआ। - प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

गोरखपुर, जेएनएन। शहर के रामजानकी नगर मुहल्ले में कोरोना से पहले पिता फिर पुत्र ने दम तोड़ दिया। करीब छह छह घंटे तक पुत्र का शव घर पर पड़ा रहा। उन्हें अर्थी देने के लिए कंधा तक नहीं मिला। कोराना का खौफ ऐसा कि पड़ोसियों ने अपने दरवाजे तक बंद कर लिए। किसी तरह शव वाहन से मृतक का शव राप्ती घाट ले जाया गया। वहां कोरोना संक्रमित मृतक के बड़े भाई ने छोटे भाई को मुखाग्नि दी।

परिवार के सभी सदस्‍य थे कोरोना  पॉजिटिव

रामजानकीनगर मुहल्ला निवासी एक शिक्षक के पिता की तबीयत कई दिनों से खराब चल रही थी। लक्षण से प्रतीत हो रहा था कि परिवार के सभी सदस्यों ने बीते 11 अप्रैल को कोरोना का टेस्ट कराया। शिक्षक के पिता सेवानिवृत्त विद्युत कर्मी की रिपोर्ट निगेटिव आई, लेकिन 12 अप्रैल को उनकी मौत हो गई। जबकि परिवार के अन्य सदस्यों की रिपोर्ट कोरोना पाजीटिव आई। पिता का अंतिम संस्कार करने के बाद घर के लोग होम आइसोलेशन में थे। गुरुवार देर रात शिक्षक की हालत बिगड़ गई। उनके संक्रमित भाई व भतीजा उन्हें शुक्रवार सुबह इलाज के लिए शाहपुर के एक निजी चिकित्सालय में लेकर गए। वहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। 

किसी ने नहीं की मदद

किसी तरह से वह वहां से शव लेकर घर आये। लेकिन मुहल्ले में कंधा देने वाले चार व्यक्ति भी नहीं मिले। किसी तरह से इसकी जानकारी उनके एक रिश्तेदार को हुई। कोरोना संक्रमित होने के कारण वह भी होम आइसोलेशन में थे। उन्होंने इसकी जानकारी जिला प्रशासन को दी। दोपहर घर पर शव वाहन पहुंचा तब जाकर उनके शव को राप्ती घाट ले जाया जा सका। वहां उनके बड़े भाई ने उन्हें मुखाग्नि दी। 12 अप्रैल को उन्होंने पिता को भी मुखाग्नि दी थी।

घर की सभी जिम्मेदारी थी शिक्षक पर 

पिता की मौत के बाद अंतिम संस्कार की रस्म सम्मन कराने की सभी जिम्मेदारी शिक्षक पर ही थी। वह घर के इकलौते जिम्मेदार सदस्य थे। वह ही सब कुछ देख रहे थे। पंडित से लेकर नाऊ तक सभी व्यवस्था में लगे थे। घर के अंदर और बाहर का काम उन्हीं के जिम्मे था। उनकी मौत से यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि अब कौन यह सब व्यवस्थाएं देखेगा।

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