फिराक गोरखपुरी : नहीं रही फिक्र तो रह जाएगी केवल फिराक की यादें
फिराक गोरखपुरी की यादों को किस तरह से नजरअंदाज किया जा रहा है। उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके पैतृक गांव बनवारपार में उनकी आखिरी निशानी बस उनका खपरैल का मकान बचा है। यह मकान भी अब अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है।
गोरखपुर, जेएनएन। रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी की पुण्यतिथि पर उनके शहर में अब उनकी मूर्ति पर माल्यार्पण के सिवाय न के बराबर आयोजन होते हैं। वर्तमान सरकार ने पुरानी धरोहरों और सम्मानित लोगों को सम्मान देने के लिए उनके पैतृक गांवों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की तैयारी कर रही है। कई बार पर्यटन विभाग के अधिकारियों द्वारा फिराक गोरखपुरी के पैतृक गांव बनवारपार का सर्वे किया गया और शासन को रिपोर्ट भेजने की बात कही गई लेकिन अभी तक पैतृक गांव को पर्यटन स्थल बनाना तो दूर की बात है एक ईंट तक नही रखी गई।
पुस्तैनी खपरैल का घर भी हो रहा जमीदोंज
फिराक गोरखपुरी की यादों को किस तरह से नजरअंदाज किया जा रहा है। उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके पैतृक गांव बनवारपार में उनकी आखिरी निशानी बस उनका खपरैल का मकान बचा है। यह मकान भी अब अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है।
वर्षों बाद भी नही बन पाया कम्युनिटी सेंटर
कुछ साल पहले शासन ने फिराक के नाम पर उनके पैतृक गांव में एक कम्युनिटी सेंटर का निर्माण कराने की घोषणा की थी। 61 लाख रुपये से बनने वाला कम्युनिटी सेंटर प्रशासन की बेरुखी के चलते आजतक अधर में हैं। इस योजना की फाइल आज भी धूल फांक रही है।
फिराक सेवा संस्थान के अध्यक्ष डा. छोटेलाल प्रचंड कहते हैं कि अपने शायरी से विश्व ख्याति फिराक गोरखपुरी को वह सम्मान नही मिला जिसके वह हकदार थे। जिसके लिए लोग प्रयासरत हैं। और शासन-प्रशासन का ध्यान कई बार आकृष्ट करने का प्रयास किया गया। भविष्य में पर्यटन विभाग प्रख्यात साहित्यकार की जन्म स्थली को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित कर आने वाली पीढिय़ों को साहित्य के क्षेत्र में विकसित करें।
शिक्षक प्रवीण श्रीवास्तव कहते हैं कि फिराक गोरखपुरी महज शायर ही नहीं थे, उन्होंने बहुत सारी कहानियां, आलोचनात्मक लेख भी लिखे हैं, साहित्य के साथ ही साथ राजनीति में भी उनका दखल था। उनकी रचनाएं भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में प्रसिद्ध है और पढ़ी जाती हैं। मन के हारे हार है मन के जीते जीत, जैसी पंक्तियां लिखने वाले शायर फिराक गोरखपुरी गोरखपुर की पहचान है।
रूमानियत, समाज एवं संस्कृति में रची बसी फिराक साहब की शायरी हर उम्र के लोगों को पसंद आती है। कायस्थ परिवार में जन्मे फिराक साहब मीर और गालिब के बाद आने वाले शायरों की पंक्तियों में सबसे ऊपर हैं। शिक्षक महीप श्रीवास्तव कहते हैं कि जिसने अपने नाम के आगे गोरखपुरी जोड़कर गोरखपुर को विश्व मे सम्मान दिलाया। आज उन्ही फिराक साहब को हम सम्मान नही देते हैं।
एक नजर में फिराक
नाम : रघुपति सहाय
जन्म : 28 अगस्त 1896
ग्राम : बनवारपार, गोला गोरखपुर
मृत्यु : 3 मार्च 1982
फिराक की प्रमुख कृतियां
गुले नगमा, बज्मे जिन्दगी रंगे शायरी, मशअल, रूहे-कायनात, नग्म-ए-साज, गजालिस्तान, शेरिस्तान, शबनमिस्तान, रूप, धरती की करवट, गुलबाग, रम्ज व कायनात, चिरागा, शोअला व साज, हजार दास्तान, हिंडोला, जुगनू, नकूश, आधीरात, परछाइयां और तरान-ए-इश्क, सहित कई सारे नज्में, कहानियां लिखी।
सम्मान
साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन 1968 में भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया।
1961 में गुले-नग्मा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार।
1969 में ज्ञानपीठ पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
1970 में साहित्य अकादमी के सदस्य मनोनीत किये गए।