पूरा परिवार कोरोना संक्रमित, दवाएं पहुंचाना तो दूर- नौ दिन तक स्‍वास्‍थ्‍य विभाग से कोई देखने तक नहीं गया

गोरखपुर में होम आइसोलेशन में रहने वालों को खुद दवा खरीदनी पड़ रही है और खुद ही डाक्टर बनना पड़ रहा है। हफ्ता-दस दिन बीतने के बाद स्वास्थ्य विभाग से किसी का फोन आ भी रहा है तो वह सिर्फ हाल-चाल जानकर शांत हो जा रहा है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Publish:Tue, 04 May 2021 08:30 AM (IST) Updated:Tue, 04 May 2021 07:38 PM (IST)
पूरा परिवार कोरोना संक्रमित, दवाएं पहुंचाना तो दूर- नौ दिन तक स्‍वास्‍थ्‍य विभाग से कोई देखने तक नहीं गया
गोरखपुर में होम आइसोलेशन में बच्चों के साथ राजेश उपाध्याय। फोटो सौजन्य स्वयं

गोरखपुर, दुर्गेश त्रिपाठी। कोरोना संक्रमण के बाद घर में आइसोलेट मरीजों को स्वास्थ्य विभाग ने उनके हाल पर छोड़ दिया है। होम आइसोलेशन में रहने वालों को खुद दवा खरीदनी पड़ रही है और खुद ही डाक्टर बनना पड़ रहा है। हफ्ता-दस दिन बीतने के बाद स्वास्थ्य विभाग से किसी का फोन आ भी रहा है तो वह सिर्फ हाल-चाल जानकर शांत हो जा रहा है। संक्रमितों को दवा तो दूर होम आइसोलेशन में क्या करना है, यह भी नहीं बताया जा रहा है।

शाहपुर में संक्रमण की पुष्टि के दस दिन बाद आया दवा के लिए फोन

कोरोना की पहली लहर में होम आइसोलेशन में रहने वाले संक्रमितों तक क्विक रिस्पांस टीम पहुंचती थी और दवाओं के साथ ही पल्स आक्सीमीटर भी उपलब्ध कराती थी। टीम में शामिल डाक्टर बात कर मरीज के लक्षण को जानते थे और दवाओं के सेवन विधि के साथ ही उनकी काउंसलिंग भी करते थे। इसके साथ ही प्रशासन के कंट्रोल रूम और लखनऊ में बने कंट्रोल रूम से मरीजों के स्वास्थ्य और अब तक मिली सुविधाओं की जानकारी ली जाती थी। लेकिन दूसरी लहर में अब तक कोई व्यवस्था नहीं बन सकी।

संक्रमण के नौ दिन बाद आया फोन

धरमपुर मुहल्ला निवासी व्यापारी राजेश उपाध्याय उनके पुत्र रोचित, रक्षित एवं सविता में कोरोना के लक्षण दिखे तो सभी ने जांच कराई। 21 अप्रैल को सभी की रिपोर्ट पाजिटिव आयी तो घर में ही आइसोलेट हो गए। उम्मीद थी कि स्वास्थ्य विभाग के लोग कोविड प्रोटोकाल से जुड़ी दवाएं पहुंचाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। रात तक कोई नहीं आया तो अगले दिन राजेश उपाध्याय ने दोस्तों की मदद से दवाई मंगवाई। 30 अप्रैल को सुबह नौ बजे शाहपुर नगरीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से फोन आया। 

स्‍वास्‍थ्‍य विभाग के कर्मी ने कहा, खुद क्‍यों नहीं आ गए

राजेश ने नौ दिन बाद हाल जानने पर सवाल किया तो बताया गया कि पोर्टल पर आज ही नाम दिखना शुरू हुआ है। और तो और उल्टे कहा गया कि यदि समय से क्विक रिस्पांस टीम नहीं पहुंची तो आप ही क्यों नहीं स्वास्थ्य केंद्र आ गए। राजेश ने कहा कि खुद संक्रमित हूं तो स्वास्थ्य केंद्र कैसे आऊंगा, स्वास्थ्यकर्मी बोला कि किसी रिश्तेदार को ही भेज दिए होते। राजेश कहते हैं कि स्वास्थ्यकर्मी का व्यवहार बहुत खराब था। राजेश ने इसकी शिकायत प्रभारी चिकित्साधिकारी से की तो उन्होंने घर आकर जांच की और स्वास्थ्यकर्मी के बुरे व्यवहार पर माफी मांगी। एक मई को जिला अस्पताल से किसी अश्वनी सिंह नाम के व्यक्ति ने फोन किया और कहा कि आप लोग संक्रमित हैं, सभी को दवा देनी है। मैंने बताया कि 10 दिन बीतने के बाद अब आपकी दवा का क्या फायदा। राजेश ने कहा कि स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हैं।

सभी लोग घर पर आइसोलेशन में

असुरन निवासी अमरेंद्र बहादुर सिंह का परिवार भी 21 अप्रैल से संक्रमित है। सभी घर पर आइसोलेशन में हैं। 30 अप्रैल को उनके पास भी शाहपुर नगरीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के कर्मचारी का फोन आया। उसने स्वास्थ्य की जानकारी और दवा की व्यवस्था के बारे में न बात कर खाना बनाने वाले के बारे में पूछा। जब अमरेंद्र ने बताया कि खाना वह खुद बनाते हैं तो फोन कट गया।

डाक्टर को भी नहीं मिली मदद

स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली का आलम यह है कि कोरोना संक्रमित डाक्टर के परिवार को भी मदद नहीं मिल पा रही है। संक्रमण के दस दिन बाद भी डाक्टर के घर पर कोई स्वास्थ्यकर्मी नहीं पहुंचा। डाक्टर की 80 वर्षीय मां घर में ही है। उम्मीद थी कि संक्रमण की पुष्टि के बाद दवा लेकर कोई घर पहुंचेगा लेकिन काफी इंतजार के बाद सभी ने मेडिकल स्टोर से दवा मंगाना ही ठीक समझा।

कंटनेमेंट जोन का बोर्ड भी नहीं लगा

राजेश कहते हैं कि कोरोना संक्रमण की पुष्टि के बाद नगर निगम इलाके को कंटेनमेंट जोन घोषित कर देता है लेकिन उनके मामले में 12 दिन बीतने के बाद भी कुछ नहीं हुआ। पूरा परिवार संक्रमित है और कोई भी बेधड़क आ-जा रहा है। 

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