Dr. Rajendra Prasad Birth Anniversary: महात्मा गांधी के इस आंदोलन ने बदल दी थी राजेन्‍द्र बाबू के जीवन की द‍िशा

Dr. Rajendra Prasad Birth Anniversary 2021 राजेन्द्र बाबू ने बापू के सारे रचनात्मक काम को बड़ा महत्व दिया। अहिंसा के मार्ग को अपनाने के लिए यह सुगम रास्ता अपनाया। खादी को इसी रूप में उन्होंने अपनाया और उसका प्रचार किया।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Publish:Fri, 03 Dec 2021 09:53 AM (IST) Updated:Fri, 03 Dec 2021 05:44 PM (IST)
Dr. Rajendra Prasad Birth Anniversary: महात्मा गांधी के इस आंदोलन ने बदल दी थी राजेन्‍द्र बाबू के जीवन की द‍िशा
भारत के प्रथम राष्‍ट्रपत‍ि डाक्‍टर राजेन्द्र। - फाइल फोटो

गोरखपुर। Dr. Rajendra Prasad Birth Anniversary: बचपन में राजेन्द्र बाबू की माता उन्हें प्रातः भजन तथा रामायण सुनाया करती थीं। इसका प्रभाव उनके जीवन पर काफी पड़ा। उनके मन में बचपन से ही अपने देश तथा समाज के प्रति सेवा करने की भावना बलवती थी। कलकत्ता विश्वविद्यालय से न्याय शास्त्र के अध्ययन के बाद यदि वे चाहते तो उन्हें अच्छा सरकारी पद प्राप्त हो सकता था। लेकिन उनके अंदर किसी भी प्रकार की न तो पदलोलुपता थी और न ही उनको धन कमाने का लालच था। उनके हृदय में एक ही भावना व्याप्त थी, वह थी अपने देश की सेवा करने की। महात्मा गांधी के रचनात्मक काम को राजेन्द्र बाबू ने अपने हाथ में लिया। इस रचनात्मक कार्यक्रम से देश में अच्छी जागृति आई। इससे स्वावलम्बी और निर्भीक कार्यकर्ता तैयार हुए।

गांधी के व‍िचारों से प्रभाव‍ित थे राजेंन्‍द्र प्रसाद

राजेन्द्र बाबू ने बापू के सारे रचनात्मक काम को बड़ा महत्व दिया। अहिंसा के मार्ग को अपनाने के लिए यह सुगम रास्ता अपनाया। खादी को इसी रूप में उन्होंने अपनाया और उसका प्रचार किया। राजेन्द्र बाबू स्वदेशी आन्दोलन के समय से ही अपने जरूरत की हर चीजें स्वदेशी ही इस्तेमाल करते थे, पर जब वह बापू के साथ हुए तब से उन्होंने खादी को अपनाया और कांग्रेस के विधान में इसको वही स्थान दिया जो स्थान स्वराज्य प्राप्ति के लिए सत्य और अहिंसा को प्राप्त था। राजेन्द्र बाबू पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी द्वारा संचालित स्वराज्य आन्दोलन का बहुत बड़ा असर पड़ा। जिस समय चंपारण में सत्याग्रह आन्दोलन चलाया जा रहा था, उस समय चंपारण में राजेन्द्र बाबू सक्रिय भूमिका निभा रहे थे। महात्मा गांधी का यह सत्याग्रह काफी सफल रहा और यहीं पर उन्हें राजेन्द्र बाबू जैसा कर्मनिष्ठ, देशभक्त एवं साहसी अनुयायी प्राप्त हुआ।

जीवन पर्यन्त महात्मा गांधी के पदचिन्हों पर चले

राजेन्द्र बाबू ने स्वतंत्रता के आन्दोलन में अपने आप को अर्पण कर दिया था और वे जीवन पर्यन्त महात्मा गांधी के पदचिन्हों पर राष्ट्रोत्थान के लिए लगे रहे। उनके नेतृत्व में असहयोग आंदोलन काफी सफल रहा। इसके लिए उन्होंने पूरे प्रान्त का दौरा किया और बैठकों को सम्बोधित किया। जिससे जनता में जागृति आई। आज हमको एक ऐसे भारतवर्ष के निर्माण में सहयोग देना है, जहां पर सभी को उन्नति का समान अवसर मिले, गरीब व अमीर में कोई भेद भाव न हो, कोई अशिक्षित न रहे और न ही कोई भूखा मरे । हमारे देश में एकता का स्वर गूंजे और भाईचारे को बढ़ावा मिले। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर हमें अपने देश की रक्षा करनी है जो कि हम स्वर्गीय राजेन्द्र प्रसाद द्वारा किए गए त्याग एवं बलिदान की प्रेरणा से प्राप्त कर सकते हैं।राजेन्द्र बाबू का जीवन एक राजनीतिक संत के जीवन जैसा था। उनका कोई शत्रु नहीं था, सब उनके मित्र थे।

महापुरुषों के नजर में राजेंद्र प्रसाद

स्वर्गीय सरोजिनी नायडू ने कहा था कि- 'राजेन्द्र बाबू के जीवन के बारे में कुछ लिखने के लिए एक ऐसी स्वर्णिम कलम चाहिए जो शहद में डुबोई हुई हो।' केवल स्वतंत्रता प्राप्ति में ही राजेन्द्र बाबू का योगदान नहीं रहा बल्कि स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत संविधान के अध्यक्ष की हैसियत से संविधान के निर्माण में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। वे बारह वर्ष भारत के प्रथम राष्ट्रपति रहे और उन्होंने इस पद की गरिमा को बढ़ाया। डाक्‍टर राधाकृष्णन् ने एक बार कहा था 'डा. राजेन्द्र प्रसाद पर जनक, बुद्ध और गांधी की छाप पड़ी।' भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि 'हमारे गणतंत्र के शुरू के बारह वर्ष राजेन्द्र काल के रूप में इतिहास में अमर रहेंगे।' हमारी पीढ़ी के लिए तो राजेन्द्र बाबू एक आदर्श हैं जिनसे लाखों नवजवान प्रभावित हो राष्ट्र निर्माण के लिए तत्पर हुए हैं।

राजेन्द्र बाबू ने ल‍िखा था..

स्वतंत्रता सभी देशों और उनमें बसने वालों का जन्मसिद्ध अधिकार है। हम भारतवासी दुर्भाग्यवश आज स्वतंत्र नहीं हैं। पर हमने निश्चय कर लिया है कि हम भी स्वतंत्र होकर ही रहेंगे। परतंत्रता का अनुभव हमको बताता है कि इसने हमारा कितना मानसिक, बौद्धिक, आर्थिक और राजनीतिक ह्रास किया है तथा हमारी उन्नति के लिए, अपना जीवन जीने के लिए एवं संसार की सेवा में अपने योग्य भाग लेने के लिए इस परतंत्रता का दूर होना आवश्यक है। हम चाहते हैं कि इस देश के सभी रहने वाले सुखी हों, भूख और दरिद्रता, रोग और अविद्या, आपस के भेदभाव, छूत-अछूत की बुरी भावना यहां से दूर हो जाएं, सबों को बिना लिहाज धर्म, जाति, कुल और वर्ग के वह सभी साधन उपलब्ध हों जो उन्नति और विकास के लिए आवश्यक है। इन महान उद्देश्यों की सिद्धि हमारे प्रयत्न, त्याग और अध्यवसाय पर बहुत कुछ अवलम्बित है। हमने इनकी प्राप्ति के लिए अहिंसात्मक उपायों का अवलम्बन स्वीकार किया है। आज हम फिर इस बार अपनी अभिलाषाओं और आशाओं को जागृत करते हैं और प्रतिज्ञा करते हैं कि हम देश को आजाद बनाएंगे और आजादी से मिलने वाली सम्पत्ति उसे उपलब्ध कराएंगे।

लेखक - डॉ अरविन्द पाण्डेय, असिस्टेंट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान, बीआरडीबीडीपीजी कालेज, आश्रम बरहज, देवरिया।

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