Gorakhpur corona period: घर जाकर भी बच्‍चों से नहीं मिल पाते थे डाक्‍टर, अब एकांतवास से मिली मुक्ति

डा. गगन गुप्ता कहते हैं कि अप्रैल मई में घर जाकर भी परिवार के बीच रहना नहीं हो पाता था। लेकिन अब वनवास के दिन कट गए हैं। वह भयानक दौर विदा हो चुका है। अब बच्‍चों व परिवार के साथ समय बिताने में सुकून महसूस हो रहा है।

By Satish Chand ShuklaEdited By: Publish:Thu, 17 Jun 2021 03:01 PM (IST) Updated:Thu, 17 Jun 2021 03:01 PM (IST)
Gorakhpur corona period: घर जाकर भी बच्‍चों से नहीं मिल पाते थे डाक्‍टर, अब एकांतवास से मिली मुक्ति
अपने बच्‍चों को लैपटाप पर अतीत की स्मृतियां दिखाते डा.गगन गुप्ता। फोटो स्वयं।

गोरखपुर, जेएनएन। संक्रमण जब चरम पर था तो कोरोना वार्ड में उससे जंग लड़ रहे डाक्टर व स्वास्थ्य कर्मी घर तो जाते थे लेकिन एकांतवास में रहते थे। अब संक्रमण कम होने के बाद परिवार की खुशियों में शरीक हो गए हैं। संकट टल गया है। इन्हीं में से एक हैं बीआरडी मेडिकल कालेज के डा. गगन गुप्ता। कहते हैं कि अप्रैल, मई में घर जाकर भी परिवार के बीच रहना नहीं हो पाता था। लेकिन अब वनवास के दिन कट गए हैं। वह भयानक दौर विदा हो चुका है। अब बच्‍चों व परिवार के साथ समय बिताने में सुकून महसूस हो रहा है। बच्‍चे भी खुश हैं।

अप्रैल में ही लगी कोरोना वार्ड में ड्यूटी

अप्रैल में संक्रमण तेज होने के साथ ही मरीजों की संख्या बढऩे लगी। उसी समय डा. गुप्ता की ड्यूटी कोरोना वार्ड में लगा दी गई। अप्रैल के तीसरे सप्ताह तक लगभग सभी बेड फुल हो चुके थे। अस्पताल के अंदर तो संक्रमण था ही, बाहर भी दहशत का माहौल था, क्योंकि संक्रमितों के स्वजन डेरा डाले हुए थे। वहां की हवाएं भी दूषित लगती थी और वातावरण से गुजरने पर भी संक्रमण का डर सताता रहता था।

काफी भयानक था वह दौर

डा. गुप्ता कहते हैं कि वह भयानक दौर था। बगल से गुजरने वाले हर व्यक्ति में संक्रमण का आभास होता था। इसलिए बहुत सावधानी से हम लोग कोविड प्रोटोकाल का पालन करते हुए वार्ड के अंदर जाते थे। वहां से निकलने के बाद पूरी तरह सैनिटाइज होकर घर पहुंचते थे। गर्म पानी रखा रहता था, नहाने व कपड़े भिगोने के बाद साफ कपड़े पहन कर अंदर जाते थे। वहां भी परिवार के किसी सदस्य से नहीं मिलते थे। उस दौरान बाहर वाले कमरे में एकांतवास में रहे। वहीं चाय, नाश्ता व भोजन आ जाता था। बेटा अविरल व बेटी अविका मिलने की जिद करती थी लेकिन पत्नी उर्मिला उन्हें रोक देती थी। मेरी भी बहुत इच्‍छा होती थी कि बच्‍चों से मिल लिया जाए लेकिन संक्रमण के डर से उनके पास नहीं जाते थे। वह समय याद कर आज भी सिहरन हो जाती है। अब वह भयानक दौर बीत चुका है। घर पहुंचने पर सतर्कता अब भी बरतते हैं लेकिन अब परिवार व बच्‍चों से दूरी नहीं रह गई है। सभी लोग साथ उठते-बैठते हैं। एक साथ चाय पीते और भोजन करते हैं। जीवन खुशनुमा हो गया है। एकातंवास के दिन कट गए। सबसे बड़ी बात कि संक्रमण का डर विदा हो गया है।

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