बेटियों को रोजगार का जरिया दे रहीं दिव्यांग उषा

गरीबी रास्ता रोक पाई और न पैरों की दिव्यांगता कम कर पाई हौसला

By JagranEdited By: Publish:Tue, 26 Oct 2021 05:53 PM (IST) Updated:Tue, 26 Oct 2021 05:53 PM (IST)
बेटियों को रोजगार का जरिया दे रहीं दिव्यांग उषा
बेटियों को रोजगार का जरिया दे रहीं दिव्यांग उषा

संतकबीर नगर : मजबूत इच्छाशक्ति व कुछ हासिल करने की जिद हो तो इंसान विपरीत हालात में भी रास्ता निकाल ही लेता है। ऐसा ही कुछ किया धर्मसिंहवा क्षेत्र की मेंहदूपार की रहने वाली उषा ने। न तो गरीबी रास्ता रोक पाई और न ही दोनों पैरों की दिव्यांगता उनका हौसला कम कर पाई। खुद बैसाखी के सहारे चलने वाली उषा मेहनत व लगन की बदौलत न सिर्फ अपने पैरों पर खड़ी हुई बल्कि सौ से अधिक लड़कियों को सिलाई, बुनाई व कढ़ाई का प्रशिक्षण देकर उनको रोजगार का जरिया दिया।

भटौरा निवासी सुनीता ने एक वर्ष पहले प्रशिक्षण प्राप्त किया। अब वह सिलाई-बुनाई करके आजीविका चला रहीं हैं। डेढ़ साल पूर्व प्रशिक्षण लेने वाली सांथा की अफसाना खातून भी आत्मनिर्भर हैं। झुड़िया की राधिका गांव की बच्चियों को सिलाई-बुनाई सिखा रहीं हैं। इसी तरह लोहरसन की जाहिरा खातून प्रशिक्षण केंद्र संचालित कर रहीं हैं।

शादी के बाद उषा ने गरीबी से मुकाबला करने के लिए पहले सिलाई-बुनाई और कढ़ाई सीखकर खुद को आत्मनिर्भर बनाया। इसके बाद पति के साथ गांव छोड़कर बेलहर थाना क्षेत्र के गनवरिया चौराहे पर किराये का मकान लिया। सिलाई-कढ़ाई सेंटर खोला। काम जब चल निकला तो क्षेत्र की गरीब बच्चियों को मुफ्त में प्रशिक्षण देना शुरू किया। इस समय क्षेत्र की सौ से अधिक बेटियां उनसे प्रशिक्षण पा रही हैं। लगभग इतनी ही लड़कियां प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद पैरों पर खड़ा हो चुकी हैं। प्रशिक्षण के लिए उषा पैसा नहीं लेतीं। बेटियों से तैयार सामान से जो कमाई हो जाती है उसी से खुश हैं।

सुबह घर का कामकाज निपटाने के बाद दोपहर व शाम को हुनर सिखाती हैं। गरीबी व बेरोजगारी से तंग आ चुकी उषा के मन में छह वर्ष पूर्व यह ख्याल आया कि खुद आत्मनिर्भर बनने के साथ ही वह गरीब बेटियों को प्रशिक्षित करेंगी। तभी से वह इस अभियान में जुटी हैं। दिव्यांगता को नहीं मानतीं कमजोरी

उषा की शादी 13 वर्ष पूर्व खलीलाबाद तहसील क्षेत्र के मेंहदूपार के संतोष से हुई थी। वह जन्म से दिव्यांग हैं। उनके दो बच्चे श्रुति व सिद्धांत हैं। वह बच्चों को ऊंची शिक्षा दिलाने का सपना पाले हुए हैं। कहती हैं कि उन्होंने कभी अपने को किसी से कम नहीं माना। ईश्वर ने हमें इसी रूप में जब धरती पर भेजा तो हम इसे अभिशाप क्यों मानें। शादी के बाद रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हुई तो पति ने साथ दिया। उन्हें सिलाई-कढ़ाई सिखाया। खुद टेंपो चलाकर परिवार का भरण पोषण करते रहे। अब स्थिति बदल गई है। वह और उनके पति ने ठान लिया है कि हमें गरीब बच्चियों को हुनर सिखाकर समाज में स्थापित करना है। कुछ लोगों ने साथ भी दिया।

उषा का कहना है कि बेटियां पढ़ लिखकर चूल्हे-चौके के कार्यों में जुट जाती हैं। इससे उन्हें दूसरों के आगे हाथ फैलाना पड़ता है। अगर कला- कौशल सीखकर आत्मनिर्भर बनेंगी तो उनको दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। स्थानीय स्तर पर बेटियों को प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना ही मेरा मकसद है।

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