अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में हुई ब्लैंक फंगस की रोकथाम पर चर्चा, विशेषज्ञों को आगे आने की जरूरत

जांस हापकिंस यूनिवर्सिटी के डा. किरेन मर्र ने कहा कि यह चिकित्सा क्षेत्र में बड़ी चुनौती है। किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी लखनऊ के डा. रेड्डी ने कहा कि ब्लैक फंगस केवल आंखों को ही नहीं फेफड़े तंत्रिका तंत्र साइनस आदि को भी प्रभावित कर रहा है।

By Satish Chand ShuklaEdited By: Publish:Sat, 12 Jun 2021 07:30 AM (IST) Updated:Sat, 12 Jun 2021 07:30 AM (IST)
अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में हुई ब्लैंक फंगस की रोकथाम पर चर्चा, विशेषज्ञों को आगे आने की जरूरत
एम्स की कार्यकारी निदेशक - डा.सुरेखा किशोर। जागरण।

गोरखपुर, जेएनएन। कोरोना के बाद ब्लैंक फंगस एक चुनौती बनकर सामने आई है। इससे निपटने व इसकी रोकथाम के लिए विशेषज्ञों को आगे आना चाहिए। इस पर विस्तार से चर्चा होनी चाहिए। यह बातें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की कार्यकारी निदेशक डा. सुरेखा किशोर ने कही। वह एम्स व जांस हापकिंस यूनिवर्सिटी यूएसए द्वारा संयुक्‍त रूप से आयोजित वर्चुअल अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रही थीं। उन्‍होंने कहा कि इस चुनौती को स्‍वीकार करना होगा। इसके निदान पर सार्थक पहल होनी चाहिए।

आंखें ही नहीं, फेफड़े, तंत्रिका तंत्र भी हो रहे प्रभावित

एम्स के नेत्र रोग विभाग की डा. अलका त्रिपाठी ने ब्लैक फंगस से पीडि़त एक मरीज का उदाहरण देकर इसके इलाज में आने वाली दिक्कतों के बारे में बताया। जांस हापकिंस यूनिवर्सिटी के डा. किरेन मर्र ने कहा कि यह चिकित्सा क्षेत्र में बड़ी चुनौती है। किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी लखनऊ के डा. रेड्डी ने कहा कि ब्लैक फंगस केवल आंखों को ही नहीं, फेफड़े, तंत्रिका तंत्र, साइनस आदि को भी प्रभावित कर रहा है। एम्स के सामुदायिक व पारिवारिक चिकित्सा विभाग के अध्यक्ष डा. हरिशंकर जोशी ने कहा कि जिस तरह से कोविड संक्रमण के दौरान बड़ी संख्या में ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या बढ़ी है। यह चिंता का विषय है। हमें इस चिंता को दूर करने की जरूरत है। संगोष्ठी में लगभग 70 विशेषज्ञों ने भाग लिया। संचालन जांस हापकिंस यूनिवर्सिटी के संक्रामक रोग विशेषज्ञ डा. बाब बोलिंजर ने किया।

बता दें कि कोरोना के बाद ब्‍लैक फंगस के आ जाने से आम जनता काफी परेशान हो गई। इसे लेकर डाक्‍टरों की भी चिंता बढ़ गई थी, बहरहाल चिकित्‍सकों ने इलाज किया और कुछ हद तक सफलता भी पाई। इसके स्‍थाई निदान के लिए चिकित्‍सा जगत तैयार हो गया है। ब्‍लैक फंगस को चुनौती के रूप में स्‍वीकार करते हुए पहली बार इस तरह का आयोजन किया गया जिसमें सभी विशेषज्ञों ने इससे निपटने और इसके रोकथाम पर गंभीर चर्चा की। चर्चा के दौरान यह बात सामने आई कि इस पर अभी से काम करने की जरूरत है।

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