Sawan Somvar 2021: सावन के पहले सोमवार को शिव मंदिरों पर उमड़े भक्त, गूंजा जयघोष

Sawan Somvar 2021 सुबह चार बजे ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु शिवालयों पर पहुंचना शुरू हुए। शिव बाबा का जलाभिषेक किया मत्था टेका और मंगल कामना की। सोमवार के मद्देनजर मंदिर प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुविधा व सुरक्षा का पूरा बंदोबस्त किया है।

By Satish Chand ShuklaEdited By: Publish:Mon, 26 Jul 2021 12:50 PM (IST) Updated:Mon, 26 Jul 2021 12:50 PM (IST)
Sawan Somvar 2021: सावन के पहले सोमवार को शिव मंदिरों पर उमड़े भक्त, गूंजा जयघोष
सोमवार को भगवान शिव पर जलाभिषेक के लिए लाइन में श्रद्धालु, जागरण।

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। भगवान भोले नाथ का महीना माने जाने वाले सावन के पहले सोमवार को शिव मंदिरों पर महाशिवरात्रि जैसा माहौल है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़े। भोले बाबा का दूध व जल से अभिषेक कर मंगल कामना की। माहौल भक्ति से ओतप्रोत है। हर हर महादेव का जयघोष गूंज रहा है।

सुबह चार बजे ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु शिवालयों पर पहुंचना शुरू हुए। शिव बाबा का जलाभिषेक किया, मत्था टेका और मंगल कामना की। सोमवार के मद्देनजर मंदिर प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुविधा व सुरक्षा का पूरा बंदोबस्त किया है। स्वयं सेवक श्रद्धालुओं की मदद के लिए तैयार हैं और उनको क्रमबद्ध ढंग से दर्शन-पूजन करा रहे थे। एक तरफ जलाभिषेक, दर्शन-पूजन व दूसरी तरफ मंदिर परिसर में रुद्राभिषेक चल रहा है। वैदिक मंत्रोच्चार गूंज रहे हैं।

महादेव झारखंडी मंदिर व मुक्तेश्वरनाथ मंदिर सहित लगभग सभी शिव मंदिरों पर श्रद्धालु भोर से ही पहुंचने लगे थे। मंदिर जाने वाले रास्ते श्रद्धालुओं द्वारा किए जा रहे 'हर हर महादेव' के जयघोष से गुंजायमान थे। सुबह चार बजे के बाद सभी मंदिरों के कपाट खुल गए थे। श्रद्धालुओं ने मंदिर पहुंचकर बाबा का जयघोष किया और शिव बाबा को भांग-धतूरा, बेलपत्र, श्वेत मंदार पुष्प, गन्ना आदि अर्पित करने के बाद दूध व जल से अभिषेक किया। पूजन का सिलसिला दोपहर तक चलता रहा। हालांकि श्रद्धालुओं के मंदिर जाने व रुद्राभिषेक का क्रम अभी जारी है।

इसलिए होता है शिव का सावन में जलाभिषेक

पं. शरदचंद्र मिश्र के अनुसार सतयुग में देव-दानवों के मध्य अमृत प्राप्ति के लिए सागर मंथन हो रहा था। अमृत कलश से पूर्व कालकूट विष निकला। उसकी भयंकर लपट न सह सकने के कारण सभी देव गण ब्रह्मा के पास गये। ब्रह्मा जी ने कहा कि अब तो ब्रह्मांड को केवल शिव जी ही बचा सकते हैं। सभी देवगणों की प्रार्थना पर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने वस्तुस्थिति को जानकर विष की भयानकता से जगत की रक्षा के लिए विष पी लिया। विष को उन्होंने अपने कंठ में धारण कर लिया जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया। इसलिए वे नीलकंठ कहलाए। वह सावन का महीना था। उस विष की गर्मी शांत करने के लिए सभी ने उनका जलाभिषेक किया। तभी से यह परंपरा चल रही है।

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