देवरिया में बालिकाओं को आश्रय देने के लिए नहीं कोई गृह
जिले में एकमात्र राजकीय बाल गृह बालक में हैं 31 किशोर बाल गृह बालिका व शिशु गृह की सुविधा की जरूरत
जागरण संवाददाता, देवरिया: जिले में बच्चों के संरक्षण व सुरक्षा के इंतजाम नहीं हो पा रहे हैं। शिशु गृह व राजकीय बाल गृह बालिका न होने से शिशुओं व बालिकाओं को आश्रय नहीं मिल पा रहा है। दूसरे जिलों के आश्रयस्थलों पर भेजना मजबूरी है।
सरकार की तरफ से जिले में एकमात्र राजकीय बाल गृह बालक संचालित है। इसकी क्षमता 50 बच्चों को रखने की है। इस गृह में उपेक्षित, निराश्रित, भूले-भटके, खोए-पाए बच्चों को रखा जाता है। वर्तमान में 10 से 18 आयु वर्ग के 31 किशोर यहां रहते हैं। उनको खाने, पहनने, पढ़ने-लिखने की व्यवस्था है। न्यायिक व प्रशासनिक अधिकारियों की तरफ से समय समय पर निरीक्षण किए जाते हैं। कमियां मिलने पर उसे दूर कराया जाता है। जिले में राजकीय बाल गृह बालिका, शिशु गृह, विशेष दत्तक ग्रहण अभिकरण की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही है। इनके न होने से 10 से 18 वर्ष आयु की किशोरियों को राजकीय बाल गृह बालिका बलिया में आश्रय के लिए भेजा जाता है। 18 वर्ष से अधिक उम्र की युवतियों को नारी संरक्षण गृह गोरखपुर में रखा जाता है। लावारिश हाल में शिशुओं के मिलने पर जिले में रखने की व्यवस्था नहीं है। नवजात शिशुओं को गोरखपुर भेजा जाता है। लोगों का कहना है कि शासन को बाल संरक्षण के लिए सरकारी संस्थाओं को स्थापित करना चाहिए। इसके लिए विभाग की तरफ से प्रयास किए जाने चाहिए।
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कोरोना काल में अनाथ हुए सभी बच्चों को अपने रिश्तेदारों या स्वजन ने सहारा दिया है। इसलिए उन्हें राजकीय बाल गृह बालक में नहीं रखा गया है। बच्चे अपने घर पर ही खुश नजर आ रहे हैं।
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जिले में राजकीय बाल गृह बालक में वर्तमान में 31 किशोर हैं। उनको पौष्टिक भोजन के अलावा पढ़ाई लिखाई व अन्य सुविधाएं प्रदान की जाती है।
यशोदानंद तिवारी,
अधीक्षक
राजकीय बाल गृह बालक