बिना वरदहस्त हाथ का साथ कैसा
चुनावी माहौल में नए-नए फसाने सामने आ रहे हैं। पुराने रिश्ते-नाते टूट रहे हैं। नए जुड़ रहे हैैं। एक मामला तो हाथ-ओ-हाथ हो गया..दैनिक जागरण गोरखपुर के साप्ताहिक कालम शहर में यहां पढ़ें गोरखपुर के प्रशासनिक महकमे के अंदरखाने की हर खबर-
गोरखपुर, बृजेश दुबे। सोमवारी जाम से गोरखपुर ही नहीं, आसपास के जिलों से आने वाले भी परिचित हैं। अब उनका सामना जाम के नए इलाकों से भी हो रहा है। जिन स्थानों पर काम चल रहा है, वह तो हमेशा जाम में रहते हैैं। सिस्टम आंखें मूंदे है। व्यवस्था बनाता तो जनता जाम में नहीं फंसती, सिद्धार्थनगर से 25 अक्टूबर को लौटते समय पुलिस के आला अफसर नहीं फंसे। मानीराम क्रासिंग बंद थी। खुलने पर साहब जाम में न फंस जाएं, स्थानीय थाने-चौकी की फोर्स लग गई। क्रासिंग खुलने पर एस्कार्ट रास्ता बनाता गया और साहब की गाड़ी बिना जाम में फंसे आराम से निकल गई। कुछ समझदार लोगों ने साहब के पीछे गाड़ी लगाई और बिना जाम में फंसे शहर पहुंच गए। न बरगदवा में जाम झेला न गोरखनाथ पुल पर। शहर पहुंचने के बाद एक समझदार ने टिप्पणी की कि जाम लगे तो वीआइपी की गाड़ी बुलवा लो। गाड़ी नहीं फंसेगी।
बिना वरदहस्त हाथ का साथ कैसा
चुनावी माहौल में नए-नए फसाने सामने आ रहे हैं। पुराने रिश्ते-नाते टूट रहे हैं। नए जुड़ रहे हैैं। एक मामला तो हाथ-ओ-हाथ हो गया। चुनाव में सरकार को घेरने में जुटीं पार्टी की यूपी सर्वेसर्वा राष्ट्रीय नेता का कार्यक्रम लगा हुआ था। रैली की सफलता के लिए पड़ोसी जिले वाले नेताजी भी लगे थे। स्थनीय नेता भी लोगों से संपर्क कर भीड़ जुटाने में लगे थे। स्थानीय संगठन भी बैठक और होर्डिंग के जरिए अपने को सक्रिय बनाए हुए था, लेकिन इसी बीच झटका लग गया। पुराने नेता की नई पीढ़ी के शख्स का शादीघर बैठक का ठीहा था, जिसपर ताला लग गया। संगठन बिफरा। पूछताछ शुरू हुई कि इतने बड़े नेता का कार्यक्रम है और बैठक के स्थान पर ताला लग गया। सुना है जो जवाब मिला, उसने सभी को चुप कर दिया। जवाब था कि न वरदहस्त रखा न कमेटी में जगह मिली। आखिर कब तक खर्च उठाएं।
तनख्वाह आ गई, दिल बड़ा कर लो
सबकी दीपावली अ'छे से मन जाए, सरकार ने इसके लिए कई कदम उठाए। एक तारीख तक वेतन जारी करने के निर्देश दिए। खाते में रकम पहुंच भी गई। छोटे कामगारों के घर भी दीपावली की खुशियों से जगमगाएं, इसके लिए योजनाएं चलाईं। नगर निगम भी इसमें जुटा। दीपावली मेला लगाकर हिम्मत और हुनर से तैयार उत्पादों को बाजार दिया। बाउजी खरीदारी करने गए, साथ में बाबा भी पहुंचे। गोबर के दीये वाले स्टाल से कुछ सेट खरीदे भी। एक जनप्रतिनिधि ने भी 500 रुपये खर्च कर दीये के पांच सेट खरीदे। दीये लेकर चलने लगे तो कुछ और खरीदने का आग्रह हुआ। नेताजी की अगुवाई में लगे बड़बोले कर्मचारी ने बोल दिया कि बड़ा महंगा है। सस्ता लगाओ तो लें। नेताजी ने उन्हें आड़े हाथों ले लिया। बोले- सरकार ने इस बार तनख्वाह जल्दी भेज दी है न। कभी तो दिल बड़ा कर लिया करो। वह तुमसे अधिक मेहनती हैैं।
आओ, बैठो बातें कर लो
जनता जमान की जय हो, सपनों की ऊंची उड़ान की जय हो के नारे के साथ पूरब-उत्तरपट्टïी वाली नेताजी असमंजस में हैं। यूं तो संगठन में बड़ा ओहदा मिला है और लोग प्रमोशन मान रहे हैैं, लेकिन नेताजी के अभिन्न सलाहकार इसे सत्ता से दूरी मान रहे हैैं। दरअसल नेताजी को राष्ट्रीय संगठन में जिम्मेदारी मिली है और पार्टी का बहुत पुराना सिद्धांत है कि एक व्यक्ति एक ही पद पर रहेगा। यानी संगठन में शामिल होने के बाद सत्ता से दूरी संभावित है। विधानसभा चुनाव को देखते हुए नेताजी के सलाहकार सक्रिय हैैं और बैठकर बात कराने वाले को खोज रहे हैैं। वहीं विरोधी गुट ने खुद को टिकट मिलने की हवा उड़ा रखी है। सबको बता रहे कि हाईकमान ने अजेय रहने का आशीर्वाद देकर जुटने का इशारा किया है। हालांकि वह भी बात कराने वाले को खोज रहे। यानी खलबली दोनों तरफ हैैं। मध्यस्थ दोनों को चाहिए।