दूसरी लहर में इस म्यूटेंट ने बनाया कोरोना वायरस को खतरनाक, संक्रमित मरीजों के अध्ययन में हुआ खुलासा

कोरोना वायरस के नए म्यूटेंट ने रक्त के थक्के जमाने (ब्लड क्लाटिंग) में तेजी दिखाई तो संक्रमण को भी तेजी से बढ़ाया। जिन मरीजों में क्लाटिंग और संक्रमण की दर देर से पता चली उनकी हालत गंभीर होती गई।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Publish:Mon, 19 Jul 2021 08:02 AM (IST) Updated:Mon, 19 Jul 2021 12:41 PM (IST)
दूसरी लहर में इस म्यूटेंट ने बनाया कोरोना वायरस को खतरनाक, संक्रमित मरीजों के अध्ययन में हुआ खुलासा
दूसरी लहर में डी-डाइमर और सीआरपी ने कोरोना वायरस को खतरनाक बनाया था। - प्रतीकात्मक तस्वीर

गोरखपुर, गजाधर द्विवेदी। दूसरी लहर में कोरोना संक्रमण से मौतों का आंकड़ा यू ही नहीं बढ़ा। कोरोना वायरस के नए म्यूटेंट ने रक्त के थक्के जमाने (ब्लड क्लाटिंग) में तेजी दिखाई तो संक्रमण को भी तेजी से बढ़ाया। जिन मरीजों में क्लाटिंग और संक्रमण की दर देर से पता चली, उनकी हालत गंभीर होती गई। खून की जांच से जिनके बारे में पहले पता चल गया, उन्हें समय पर इलाज देकर बचा लिया गया। दूसरी लहर में इस म्‍यूटेंट ने भारी तबाही मचाई थी।

बीआरडी के माइक्रोबायोलाजी विभाग ने किया केस हिस्ट्री का अध्ययन

ये तथ्य बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कालेज के माइक्रोबायोलाजी विभाग के अध्ययन में पता चला है। सलाह दी गई है कि कोरोना संक्रमण की पुष्टि के लिए होने वाली रीयल टाइम पालीमरेज चेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) जांच के साथ ही सी-रियेक्टिव प्रोटीन (सीआरपी), सीरम फेरिटिन, डी-डाइमर (ब्लड क्लाटिंग की स्थिति) व सीरम लैक्टोज डिहाइड्रोजिनेज (एलडीएच) जानने के लिए ब्लड टेस्ट कराया जाए। नौ दिन बाद दोबारा जांच कराई जाए।

395 संक्रमित मरीजों की केस हिस्ट्री के अध्ययन में हुआ खुलासा

इस अध्ययन में कोरोना वार्ड में भर्ती 395 संक्रमित मरीजों की केस हिस्ट्री शामिल की गई है। जिन 73 मरीजों की मौत हुई, उन सभी की सीटी वैल्यू 25 से कम यानी संक्रमण अधिक था। इनका सीआरपी, सीरम फेरिटिन व सीरम एलडीएच काफी बढ़ा था। 60 मरीजों में मौत का कारण डी-डाइमर और सीआरपी लेवल बढऩा था। 13 मरीजों की मौत की वजह पहले से कोई न कोई गंभीर बीमारी होना रही। जिन मरीजों की सीटी वैल्यू 15 से कम रही, उनकी मौत दो-तीन दिन में ही हो गई।

कोरोना से लडऩे के लिए आरटी-पीसीआर के साथ ब्लड टेस्ट भी जरूरी

10 संक्रमित ऐसे थे जिनका सीटी वैल्यू 25 से कम था। ब्लड टेस्ट से समय पर सारे कारक पता चल गए। इलाज से इंफेक्शन व डी-डाइमर वैल्यू नियंत्रित रखकर सभी को बचा लिया गया। शेष मरीजों में सीटी वैल्यू 25 से अधिक था। इनके इलाज में सामान्य प्रोटोकाल अपनाया गया। इस अध्ययन को नागपुर के इंटरनेशनल जर्नल आफ बायोमेडिकल एंड एडवांस रिसर्च ने जून 2021 के अंक में प्रकाशित किया है।

जिन संक्रमित मरीजों का ब्लड टेस्ट नहीं हुआ, उनमें संक्रमण के प्रमुख कारकों की स्थिति पता नहीं चली। संक्रमण बढ़ा, आक्सीजन लेवल 70 से 60 के बीच चढ़ता-गिरता रहा। ऐसे मरीज जब अस्पताल लाए गए, संक्रमण काफी फैल चुका था। वहीं, आरटी-पीसीआर जांच के साथ ही ब्लड टेस्ट होने से सभी कारक की सही जानकारी मिलेगी और उसी अनुरूप इलाज होगा। एम्स और संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान ने आरटी-पीसीआर संग ब्लड टेस्ट को मैनेजमेंट प्रोटोकाल में शामिल किया है। इसीलिए लक्षण दिखे तो लोगों को अस्पताल में भर्ती हो जाना चाहिए।

यह अध्ययन मौतों की रोकथाम में मददगार होगा। अध्ययन जारी है। इसमें नए फैक्टर भी शामिल किए गए हैैं। - डा. अमरेश सिंंह, अध्यक्ष, माइक्रोबायोलाजी विभाग, बीआरडी मेडिकल कालेज।

कम सीटी वैल्यू यानी अधिक वायरस लोड

आरटी-पीसीआर विधि से नमूने की जांच अधिकतम 35 चरण में होती है। इतने में वायरस नहीं मिला तो निगेटिव मान लिया जाता है। 15 सीटी वैल्यू का मतलब है कि 15वें चरण में ही वायरस मिल गया। यानी संक्रमण काफी अधिक है।

न्यूमेरिक्स इंफो

395 संक्रमितों की केस हिस्ट्री पर अध्ययन

73 मृत संक्रमित की केस हिस्ट्री भी शामिल

25 से कम सीटी वैल्यू और अधिक सीआरपी वाले मरीजों की हुई मौत

15 से कम सीटी वैल्यू वाले मरीज दो-तीन दिन ही रह पाए जीवित

जांच में यह बिंदु भी शामिल

जिन मरीजों की मौत हुई, उनकी भौगोलिक और आर्थिक स्थिति

लक्षण दिखने के कितने दिन बाद भर्ती हुए

शाकाहारी थे या मांसाहारी

शराब, सिगरेट या अन्य नशे की जानकारी।

chat bot
आपका साथी