पंद्रह हजार बुनकरों के सामने रोजी-रोटी का संकट, नहीं मिल रहे आर्डर- तैयार माल के भी खरीदार नहीं
गोरखपुरमें चार हजार से ज्यादा पावरलूम बंद पड़े हैं और उस पर काम करने वाले करीब 15 हजार बुनकरों की हालत खस्ता हो चुकी है। पिछले वर्ष मार्च में लगे लाकडाउन से बुनकर उबरे भी नहीं थे कि एक बार फिर काम-धंधा ठप हाे गया है।
गोरखपुर, जेएनएन। देशभर में बुनकरी के हुनर से पहचाने जाने वाले गोरखपुर के कपड़ा उत्पादन को कोरोना संक्रमण काल अब लील रहा है। चार हजार से ज्यादा पावरलूम बंद पड़े हैं और उस पर काम करने वाले करीब 15 हजार बुनकरों की हालत खस्ता हो चुकी है। पिछले वर्ष मार्च में लगे लाकडाउन से बुनकर उबरे भी नहीं थे कि एक बार फिर काम-धंधा ठप हाे गया है। पिछले एक माह से न तो कोई नया आर्डर मिला है और न ही तैयार माल ही बाजार में बिक सका। हालत यह हो गई है कि बुनकरी के पेशे से जुड़े कामगार उधार लेकर किसी तरह घर का खर्च चला रहे हैं। उनकी ईद की खुशियां भी फीकी रही।
एक माह से बंद चल रहे हैं चार हजार से ज्यादा पावरलूम
कृषि के बाद सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला व्यवसाय हथकरघा और पावरलूम बेहद खराब स्थिति से गुजर रहा है। शहर के बुनकर बहुल्य कहे जाने वाले चक्सा हुसैन, जमुनहिया, अहमदनगर, नौरंगाबाद, जाहिदाबाद, पुराना गोरखपुर, हुमांयूपुर, रसूलपुर, दशहरी बाग, अजय नगर में कभी चौबीस घंटे खटर-पटर की आवाज सुनाई देती थी। हाथों से बुने चादर, तौलिया, गमछा, सेना की वर्दी आदि पूरे देश में बिका करते थे, लेकिन इधर कुछ वर्षों से पेशा प्रभावित हुआ, लेकिन लाकडाउन ने बुनकरों की मानो कमर ही तोड़ दी।
लोगों के कर्जदार हो गए बुनकर
महीनोें तक काम पूरी तरह ठप रहा है और इस दौरान बुनकर कर्जदार हो गए। जिंदगी पटरी पर लौटती इससे पहले ही एक बार फिर कोरोना ने काम-धंधा चाैपट कर दिया। बुनकरों के पास न तो कच्चा माल है और न ही तैयार माल के खरीदार मिल रहे हैं। बुनकर नेता जावेद जमां कहते हैं एक वक्त था जब शहर के 14 मोहल्लों में तकरीबन एक लाख लोग इस पेशे से जुड़े हुए थे। 1990 के बाद से बुनकरों ने पावरलूम पर काम शुरू किया।
गोरखपुर में साढ़े आठ हजार पावरलूम लगे, लेकिन बुनकरों के पास आज कोई काम नहीं है और सैकड़ों हथकरघा एवं पावरलूम खामोश पड़े हैं। अगर सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो न सिर्फ बुनकरी का हुनर समाप्त हो जाएगा, बल्कि हजारों लोग बेरोजगार हो जाएंगे।
कोलकाता से आते थे व्यापारी
एक समय था जब बंगाल और बिहार से बुनाई करने मजदूर और कोलकाता से व्यापारी आते थे। चादर, तौलिया, गमछा, लूंगी की बहुत डिमांड थी, लेकिन धीरे-धीरे सब खत्म हो गया। जो थोड़ा बहुत काम मिलता था अब वह भी बंद हो गया। पावरलूम बंद होने के कारण रोजी रोटी के साथ परिवार चलाने की चिंता सता रही है। - अहजर हुसैन अंसारी
तैयार माल बेचने का बाजार नहीं है। इसलिए बहुत से लोगों ने पावरलूम बंद कर सब्जी या फल बेचने का कार्य शुरू कर दिया है। बुनकर चाहते हैं कि हालात को देखते हुए सरकार कर्ज न दें बल्कि कुछ ऐसी व्यवस्था कर दे जिससे उनकी रोजी-रोटी का इंतजाम हो सके। - जाहिद अंसारी।
सरकार पहले की तरह रियायती दर पर धागा एवं तैयार माल के लिए बाजार उपलब्ध कराए तो हजारों कामगारों की जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौट आएगी। सरकारी दफ्तरों और अस्पतालों में हथकरघा एवं पावरलूम पर निर्मित पर्दा, तौलिया एवं बेडशीट खरीद की बात कहीं गई थी उस पर भी अमल नहीं हुआ। - अब्दुल सलाम।