हिम्मत व हौसले से पोलियो को दी शिकस्त, अपने पैरों पर खड़ा होने की ठानी
चौरीचौरा में दो दिसंबर 1970 को पैदा हुए उमेश तीन साल की उम्र में पोलियो के शिकार हो गए। उनका लखनऊ में आपरेशन हुआ था। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी आई थीं। उन्होंने कहा था- बेटा तुम ऐसा बनो कि तुम्हारे जैसा कोई और न हो।
गोरखपुर, जेएनएन। हिम्मत व हौसला हो तो असाध्य बीमारियां भी राह नहीं रोक सकतीं। यह साबित कर दिखाया है पोलियो से अपने दोनों पैर गंवा चुके उमेश कुमार किरन ने। दूसरों पर आश्रित होने की बजाय उन्होंने अपने पैरों पर खड़ा होने की ठानी। आजीविका के लिए काम भी ऐसा चुना जिससे पोलियोग्रस्त लोगों की मदद हो सके।
विश्व पोलियो दिवस पर शनिवार (24 अक्टूबर) को वह पोलियोग्रस्त लोगों को आनलाइन जागरूक करेंगे।
चौरीचौरा में दो दिसंबर 1970 को पैदा हुए उमेश तीन साल की उम्र में पोलियो के शिकार हो गए। प्रारंभिक शिक्षा चौरीचौरा में हुई। वह सात साल के थे तो उनका लखनऊ में आपरेशन हुआ था। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी आई थीं। उमेश से भी मिलीं। उमेश बताते हैं कि वह मेरी प्रेरणास्रोत बन गईं। उन्होंने कहा था- बेटा तुम ऐसा बनो कि तुम्हारे जैसा कोई और न हो।
गोरखपुर विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक किया। मध्य प्रदेश से कृत्रिम अंग विषय में परास्नातक करने के बाद 1995 में बाल विहार के पास दिव्यांगों के लिए उपकरण बनाना शुरू किया। सरकारी व गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि के रूप में भी वह दिव्यांग जनों की सेवा कर रहे हैं। समय-समय पर शिविर आयोजित कर दिव्यांगों के पुनर्वास, उपकरण वितरण, परीक्षण व आपरेशन की व्यवस्था कराते हैं। उनके कार्यों के लिए उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान सरकार ने पुरस्कृत किया है।
मिले ये पुरस्कार
1999 में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने 'उत्कृष्ट दिव्यांग पुरस्कार प्रदान किया।
2008 में छत्तीसगढ़ सरकार ने 'प्रेरणास्रोत पुरस्कार से नवाजा।
2019 में राजस्थान सरकार ने 'दिव्यांग रत्न से सम्मानित किया।