गोरखपुर शहर में एक हेक्टेयर में विकसित होगा सिटी फारेस्ट Gorakhpur News

सिटी फारेस्ट शहर के लिए पूरी तरह से आक्सीजन बैंक की तरह काम करेगा। इस उपवन में लोगों के टहलने की भी व्यस्था होगी और छोटी-छोटी झोपडिय़ों में लोगों के बैठने की व्यवस्था होगी।

By Satish ShuklaEdited By: Publish:Fri, 05 Jun 2020 08:10 AM (IST) Updated:Fri, 05 Jun 2020 10:34 AM (IST)
गोरखपुर शहर में एक हेक्टेयर में विकसित होगा सिटी फारेस्ट Gorakhpur News
गोरखपुर शहर में एक हेक्टेयर में विकसित होगा सिटी फारेस्ट Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। शहर के एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में सिटी फारेस्ट डेवलप किया जाएगा। इस उपवन में लोगों के टहलने की भी व्यस्था होगी और छोटी-छोटी झोपडिय़ों में लोगों के बैठने की व्यवस्था होगी। इसके लिए नगर निगम के अधिकारियों को वन विभाग के अधिकारियों से समन्वय स्थापित करने के लिए कहा गया है।

नगरीय वन स्थापित करने से मिलेगा लाभ

प्रमुख सचिव अर्बन डेवलपमेंट दीपक कुमार ने वन व नगर निगम के अधिकारियों संग आयोजित बैठक में यह निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि शहर में नगरीय वन स्थापित करने से लोगों को बड़ा लाभ मिलेगा। इसमें पैदल चलने वालों के लिए पगडंडी, बैठने के लिए बेंच की व्यवस्था आदि के साथ उसे पर्यटकीय रूप दिया जाएगा। इस स्थल को प्राकृतिक जंगल का रूप दिया जाएगा। वीडियो कांफ्रेंसिंग में डीएफओ अविनाश कुमार ने बताया कि वह कैंपियरगंज तहसील मुख्यालय के पास 45 लाख की लागत से एक मियावाकी फारेस्ट स्थापित करने की तैयारी कर रहे हैं। इसमें मनरेगा के जरिये पौधारोपण के लिए कार्य होगा। इससे तमाम प्रवासी मजदूरों को भी काम मिल सकता है। उन्होंने कहा कि सामान्यत: एक हेक्टेयर में 1100 पौधे लगाए जाते हैं, लेकिन मियावाकी तकनीकि के जरिये इस उपवन में 33 हजार पौधे लगाए जाएंगे। इसमें पौधों की जड़े आपस में जुड़ जाएंगी। उसके बाद पौधों का तेजी से विकास हो सकेगा। डीएफओ ने कहा कि शीतलता के लिए जंगल उगाना ही एकमात्र उपाय है।

क्या है मियावाकी तकनीक

डीएफओ ने बताया कि मियावाकी तकनीक को जापान के वनस्पति शास्त्री अकीरा मियावाकी ने विकसित किया था। इस तकनीक की मदद से बहुत कम और बंजर जमीन में भी तीन तरह के पौधे (झाड़ीनुमा, मध्यम आकार के पेड़ व छांव देने वाले बड़े पेड़) लगाकर जंगल उगाया जा सकता है। इस तकनीक से पौधों का तेजी से विकास होता है। इसे कैंपिरगंज में एक हेक्टेयर में विकसित किया जाएगा, लेकिन अभी प्रयोग के तौर पर इसे 100 वर्ग मीटर में विकसित किया जाएगा। डीएफओ अविनाश कुमार का कहना है कि वीडियो कांफ्रेंसिंग में सिटी फारेस्ट व मियावाकी फारेस्ट पर चर्चा हुई है। इन दोनों ही उपवनों को तैयार करने के लिए बड़े पैमाने जीवामृत व गोबर की खाद का प्रयोग किया जाएगा। सिटी फारेस्ट शहर के लिए पूरी तरह से आक्सीजन बैंक की तरह काम करेगा। ऐसे ही मियावाकी फारेस्ट भी कार्बन को एकत्रित करने में अपनी बड़ी भूमिका निभाएगा। 

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