रक्‍तदाता नहीं पहुंच पा रहे अस्‍पताल, थैलीसीमिया के मरीजों के इलाज में आड़े आ रही खून की कमी Gorakhpur News

कोरोना के कारण रक्तदाता बीआरडी मेडिकल कालेज के ब्लड बैंक में नहीं पहुंच पा रहे हैं इसलिए रक्त की कमी हो गई है। यह कमी थैलीसीमिया के मरीजों के इलाज में आड़े आ रही है। हालांकि अभी तक ज्यादातर मरीजों को ब्लड उपलब्ध कराया गया है।

By Rahul SrivastavaEdited By: Publish:Sat, 08 May 2021 07:10 PM (IST) Updated:Sat, 08 May 2021 07:10 PM (IST)
रक्‍तदाता नहीं पहुंच पा रहे अस्‍पताल, थैलीसीमिया के मरीजों के इलाज में आड़े आ रही खून की कमी Gorakhpur News
थैलीसीमिया के मरीजों को नहीं मिल पा रहा खून। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

गोरखपुर, जेएनएन : कोरोना के कारण रक्तदाता बीआरडी मेडिकल कालेज के ब्लड बैंक में नहीं पहुंच पा रहे हैं, इसलिए रक्त की कमी हो गई है। यह कमी थैलीसीमिया के मरीजों के इलाज में आड़े आ रही है। हालांकि अभी तक ज्यादातर मरीजों को ब्लड उपलब्ध कराया गया है, लेकिन यही स्थिति रही तो आने वाले दिनों में संकट उत्पन्न हो सकता है। मेडिकल कालेज में 120 थैलीसीमिया के मरीज रजिस्टर्ड हैं। 50 से 60 मरीजों को हर माह खून दिया जाता है। जिन मरीजों के ब्लड ग्रुप का खून नहीं उपलब्ध होता है, उन्हें दूसरे ब्लड बैंक में भेज दिया जाता है।

रक्‍तदाताओं के आगे नहीं आने से खून की कमी

हर माह 55 से 60 मरीज ब्लड बैंक में पहुंचते हैं। रक्तदाता आगे आ नहीं रहे हैं, इसलिए खून की कमी हो गई है। ऐसे मरीजों को हर 15 से 21 दिन पर खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। शासन का निर्देश है कि बिना रक्तदाता लाए भी ऐसे मरीजों को खून दिया जाए। ब्लड बैंक प्रभारी डा. राजेश कुमार राय ने बताया कि खून की बहुत ज्यादा कमी हो गई है। बाहर का कोई व्यक्ति रक्तदान करने नहीं आ रहा है। कालेज के लोगों के रक्तदान से यह कमी पूरी की जा रही है।

एंटीबाडी की जांच कर पता किया जाएगा संक्रमण

थैलीसीमिया के मरीजों को जो ब्लड चढ़ाया जा रहा है। उसकी वजह से मरीजों में कोई संक्रमण तो नहीं फैल रहा है। इसके लिए मरीजों की एंटीबाडी जांच की जाएगी। जांच से यह भी जानकारी मिल सकेगी कि कही दिए जाने वाले खून में कोई हानिकारक तत्व तो नहीं हैं।

क्या है थैलीसीमिया

थैलीसीमिया अनुवांशिक बीमारी है, जो माता-पिता से आती है। इस बीमारी में चेहरा सूखने लगता है। बच्‍चे की तबीयत अक्सर खराब रहती है। साथ ही वजन भी नहीं बढ़ता है। यह पूरी तरह से रक्तरोग है। इस बीमारी से शरीर में हीमोग्लोबिन के निर्माण में काफी दिक्कतें होती हैं। इसकी वजह से खून की कमी मरीज में हर 15 से 21 दिनों में दिखने लगती हैं। ऐसे में बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। इसकी पहचान तीन माह की उम्र के बाद ही हो पाती है।

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