डिजिटल दुनिया में रोजगार की असीमित संभावनाएं हैं

साक्षात्कार - डा. संजय द्विवेदी महानिदेशक भारतीय जन संचार संस्थान वैश्विक बाजार में भारतीय भाषाएं हुई ताकतवर तेजी से बढ़ रही इनकी रीडरशिप

By JagranEdited By: Publish:Thu, 18 Nov 2021 11:41 PM (IST) Updated:Thu, 18 Nov 2021 11:41 PM (IST)
डिजिटल दुनिया में रोजगार की असीमित संभावनाएं हैं
डिजिटल दुनिया में रोजगार की असीमित संभावनाएं हैं

डिजिटल दुनिया ने युवाओं के लिए रोजगार की असीमित संभावनाओं का द्वार खोला है। परंपरागत पत्रकारिता सीमित दायरे तक हो पाती है, जबकि संचार की दुनिया कहीं बड़ी है। शिक्षा, स्वास्थ्य, अर्थ, पर्यावरण, संचार, राजनीति सहित जितने भी क्षेत्र हैं, वह अब कम्युनिकेटर (संचारक) के बिना निष्प्रभावी हैं। छवि और व्यक्तित्व निखारने की बात हो या उनके बेहतर प्रस्तुतिकरण और प्रबंधन की, अच्छे कम्युनिकेटर के बिना इसकी अब इसकी आशा नहीं की जा सकती है। इस क्षेत्र में अच्छी आय के साथ नाम-सम्मान भी है। युवाओं को इसके लिए किसी विशेष प्रकार की योग्यता प्राप्त करने की जरूरत नहीं है। हां, डिजिटल माध्यम का अच्छा ज्ञान और विषय वस्तु की अच्छी समझ होना जरूरी है और ये दोनों संचार की दुनिया में जुड़ाव और निरंतर अभ्यास से ही संभव है। कम्युनिकेटर के लिए बड़ी-बड़ी कंपनियों में जॉब मिलने के पर्याप्त अवसर हैं। यह कहना है भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी का। इस समय वह बस्ती के महरीखांवा मोहल्ले में स्थित अपने पैतृक आवास आए हुए हैं। मीडिया और राजनीतिक संदर्भ पर अब तक 25 पुस्तकों का लेखन-संपादन करने वाले डा. द्विवेदी से गुरुवार को वरिष्ठ संवाददाता एसके सिंह ने पत्रकारिता और संचार की दुनिया में संभावनाओं को लेकर उनसे बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश:- प्रश्न-संचार क्रांति की इस दुनिया में पत्रकारिता के आयाम बदल गए हैं। भारतीय पत्रकारिता की क्या संभावनाएं हैं?

उत्तर: मोबाइल क्रांति में पत्रकारिता के बदलाव को जिन मीडिया संस्थानों ने नहीं पहचाना, वे बंद हो गए। विदेश में तमाम समाचार पत्र और पत्रिकाएं बंद हो गईं। भारतीय मीडिया संस्थानों ने बदलाव की इस बयार को पहचाना और समय से उसके अनुरूप खुद को ढाल लिया। हमारे देश के बड़े मीडिया संस्थान परंपरागत पत्रकारिता के साथ डिजिटल प्लेटफार्म का बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं। हिदी पत्रकारिता की डिजिटल प्लेटफार्म पर रीडरशिप तेजी से बढ़ रही है। इसमें दैनिक जागरण सबसे आगे है। प्रश्न- डिजिटल बाजार में भारतीय भाषाएं क्या अपना स्थान बना पाएंगी?

उत्तर- भारत ही नहीं वैश्विक मंच पर भी भारतीय भाषाओं की रीडरशिप तेजी से बढ़ रही है। डिजिटल प्लेटफार्म पर ग्रामीण क्षेत्र के लोग भी अपनी भाषा में इंटरटेनमेंट के साथ ही योगा और पारिवारिक कार्यक्रमों के साथ खेती-किसानी और संस्कृति से जुड़े वीडियो, टेलीफिल्में आदि अपलोड कर रहे हैं। इनके पाठक और दर्शक सालाना 94 फीसद की दर से बढ़ रहे हैं। अर्नेस्ट एंड यंग की सर्वे रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2030 तक वैश्विक बाजार में भारतीय भाषाओं की पठनीयता 500 मिलियन तक पहुंच जाएगी। भारत में एक अरब लोग इंटरनेट सेवा से जुड़ जाएंगे। इसमें ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं की भागीदारी सर्वाधिक होगी। प्रश्न- कालेज और विश्वविद्यालयों को पत्रकारिता के कैसे पाठ्यक्रम चलाने चाहिए?

उत्तर-न्यू मीडिया, मल्टीमीडिया, ग्राफिक्स एंड एनीमेशन, प्रिंटिंग, पैकेजिंग, बुक पब्लिशिंग, बुक मार्केटिंग, डिजिटल बुक, कंटेट राइटर जैसे विषय परंपरागत पत्रकारिता के आफलाइन और आनलाइन, दोनों प्रकार के पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने की जरूरत है। इसमें प्रशिक्षित युवा घर बैठे हजारों और लाखों कमा सकता हैं। कोरोना ने वर्क फ्राम होम की कार्यपद्धति विकसित कर दी है। अब गांव में बैठा युवक भी दिल्ली और मुंबई की इंटरनेशनल कंपनी से जुड़ रहा है और जुड़ सकता है। प्रश्न- तकनीकी दक्षता के लिए किस प्रकार का पाठ्यक्रम चलाना चाहिए?

उत्तर-देखिए, टेक्नालाजी स्वयं में एक ट्रेनर है। मोबाइल आया तो क्या इसे चलाने के लिए लोगों को ट्रेनिग दी गई, नहीं। निरंतर अभ्यास से इसका उपयोग करने वाले टेक्नालाजी में निर्माताओं से भी आगे निकल गए हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार के युवा राजनीतिक, सामाजिक और बौद्धिक रूप से काफी जागरूक हैं। डिजिटल क्रांति में यहीं के लोग लीडरशिप भूमिका में हैं। डिजिटल की दुनिया क्रियेटिविटी और आइडियाज की दुनिया है। इस टेक्नालोजी ने सबको एक समान खड़ा कर दिया है। प्रश्न-युवाओं को क्या सलाह देना चाहेंगे?

उत्तर- पत्रकारिता परंपरागत हो या फिर डिजिटल, भाषा कभी भी आगे बढ़ने में बाधक नहीं रही। एक समय था, जब अंग्रेजी का वर्चस्व था, लेकिन अब संचार की दुनिया में भारतीय भाषाएं ताकतवर हुईं हैं। पत्रकारिता की दोनों ही विधाओं में पूर्वांचल की मेधा लीडर की भूमिका में हैं। इसलिए वर्तमान में भी युवाओं को दिग्भ्रमित और सशंकित नहीं होना चाहिए। उन्हें स्पष्ट सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए।

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