अघोर पीठ ने दिया संदेश, आपदा में डेढ़ माह तक एक हजार लोगों को कराया भोजन
पीठ पर रहने वाले लगभग एक दर्जन स्वयं सेवक इस कार्य में जुटे थे। अघोर पीठ पर सुबह-शाम भोजन बनता था। उसके बाद स्वयं सेवक उसे वाहन में रखते और मास्क व ग्लब्स लगाकर प्रवासियों व गरीबों के बीच चले जाते।
गोरखपुर, जेएनएन। लाकडाउन को याद कीजिए, कितना भयावह दौर था वह। चाय तक की दुकानें बंद थीं। बाजार में सन्नाटा पसरा था। बाहर से लौट रहे लोगों व शहर में रहने वाले गरीबों के सामने भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। कोरोना के खौफ के चलते लोग एक-दूसरे से मिलने में कतरा रहे थे। ऐसे में अघोर पीठ ट्रस्ट, ट्रांसपोर्ट नगर के संस्थापक अवधूत छबीलेराम आगे आए। उन्होंने महामारी के भय को दरकिनार करते हुए प्रवासियों व जरूरतमंदों का आपदा के दौर में हाथ थामा, उन्हें निवाला दिया। यह अभियान 28 मार्च से लेकर 09 मई तक अनवरत चला। प्रतिदिन एक हजार लोगों को भोजन कराया जाता था।
पीठ पर रहने वाले स्वयं सेवक करते थे दिन रात सेवा
पीठ पर रहने वाले लगभग एक दर्जन स्वयं सेवक इस कार्य में जुटे थे। अघोर पीठ पर सुबह-शाम भोजन बनता था। उसके बाद स्वयं सेवक उसे वाहन में रखते और मास्क व ग्लब्स लगाकर प्रवासियों व गरीबों के बीच चले जाते। बिछिया में लगभग 50 रिक्शेवाले एक जगह रह रहे थे। उनके दोनों समय के भोजन का इंतजाम अघोर पीठ करती। इसके अलावा स्वयं सेवक वाहन से नौसढ़, रेलवे स्टेशन व बस स्टेशन पर बाहर से आ रहे प्रवासियों को भोजन कराते। देर रात को पीठ पर लौटते और सुबह फिर भोजन बनाने में जुट जाते। इसके अलावा आसपास के जरूरतमंदों का भी उन्होंने ध्यान रखा। स्वयं सेवकों को गरीब बस्तियों में भेजकर पता करवाया किसे भोजन की जरूरत है। उनके लिए भी दोनों समय के भोजन की व्यवस्था की।
बांटे 1200 मास्क
अवधूत छबीलेराम भोजन के अलावा लोगों को कोरोना से बचाव के बारे में जागरूक भी करते रहे। पीठ पर बाहर बोर्ड लगा दिया गया कि कोई श्रद्धालु यहां न आए। परिसर के श्रद्धालुओं के लिए सैनिटाइजर, मास्क की व्यवस्था की गई। साथ ही शारीरिक दूरी का पालन अनिवार्य कर दिया गया। आसपास के जरूरतमंदों में उन्होंने 1200 मास्क का वितरण किया। जिसे पीठ पर ही सिला गया था।
सदगुरु का मूल संदेश ही सेवा
ट्रांसपोर्ट नगर स्थित अघोर पीठ के संस्थापक अवधूत छबीलेराम का कहना है कि हमारे सद्गुरु अवधूत भगवान राम का मूल संदेश ही सेवा है। मनुष्य की सेवा से बड़ी साधना कुछ और नहीं हो सकती है। परमात्म प्राप्ति का यह सबसे सहज व सुलभ मार्ग है। मनुष्य की सेवा करके हम परमात्मा की ही सेवा करते हैं क्योंकि सबमें वही तो व्याप्त है। हमने उसका दिया उसी को अर्पित कर दिया।