कहने को दिव्यांग पर लोहे के गेट, शटर, चैनल बनाने में हासिल की महारत Gorakhpur News
हौसला बुलंद हो तो दिव्यांगता अभिशाप नहीं बन सकती। ऐसे लोग विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी राह तलाश लेते हैं। कुशीनगर जिले के नेबुआ नौरंगिया विकास खंड के पिपरिया गांव के रहने वाले दिव्यांग शिवकुमार प्रसाद भी उन्हीं में से एक हैं।
संजय उपाध्याय, गोरखपुर : हौसला बुलंद हो तो दिव्यांगता अभिशाप नहीं बन सकती। ऐसे लोग विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी राह तलाश लेते हैं। कुशीनगर जिले के नेबुआ नौरंगिया विकास खंड के पिपरिया गांव के रहने वाले दिव्यांग शिवकुमार प्रसाद भी उन्हीं में से एक हैं। दोनों पैरों से दिव्यांग होने के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। वर्ष 2012 में इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद आर्थिक तंगी ने आगे की शिक्षा बाधित की तो उन्होंने अपनी डगर बदल दी।
युवाओं को सिखा रहे कारीगरी
उच्च शिक्षा का ख्याल छोड़कर शिवकुमार ने ढोलहां में एक दुकान पर दो साल तक वेल्डिंग का काम सीखा। लोहे के गेट, शटर, चैनल बनाने में महारत हासिल कर वे स्वालंबी बन गए हैं। परिवार को संबल देने के साथ ही वे युवाओं को कारीगरी भी सिखा रहे हैं। उनके जज्बे ने साबित कर दिया कि दिव्यांगता अभिशाप नहीं है। पिपरिया गांव के धुरई प्रसाद के तीन पुत्रों में मझले शिवकुमार ने वर्ष 2012 में स्वामी विवेकानंद इंटर कालेज खड्डा से इंटर की परीक्षा पास की तो आगे की पढ़ाई पर गरीबी भारी पड़ने लगी। उच्च शिक्षा का ख्याल छोड़ उन्होंने स्वावलंबी बनने का संकल्प लिया।
बड़े भाई रहते हैं बाहर
बड़े भाई राजकुमार रोजगार के सिलसिले में बाहर रहते हैं। छोटा भाई गौतम घर पर रहकर खेती के कार्य में पिता का हाथ बंटाता हैं। दिव्यांग होते हुए भी 35 वर्षीय शिवकुमार 10 से 12 हजार प्रति माह कमा लेते हैं। गांव के बाहर झोपड़ी डालकर वह दुकान खोले हैं। वहां आर्डर पर लोहे के गेट, शटर, चैनल आदि बनाते हैं। अगर दूर-दराज के गांव में आर्डर मिलता है तो अपने सहयोगी गुलशन के साथ बाइक से वहां जाकर कार्य करते हैं।
इनके घर की सुधार दी माली हालत
लक्ष्मीपुर गांव के भीरू, गुलशन, पिपरिया के सोनू, नंदकिशोर व ढोलहा के क्यामुद्दीन को शिवकुमार ने कारीगरी सिखाकर अपने पैर पर खड़ा होने लायक बना दिया। सभी युवा अपने हुनर से परिवार का खर्च चला रहे हैं।