महराजगंज में मिली पाल और प्रतिहार के संघर्ष की निशानी, खुदाई के दौरान मिले सिक्‍कों से राज खुला

नौ दिसंबर 2020 को जब खुदाई के दौरान यह सिक्के एक धातु के बर्तन में मिले तो गांव का एक व्यक्ति उन उन्हें लेकर अपने घर चला गया। लोगों ने जब पुलिस को सूचना दी तो व्यक्ति को तलाश कर बर्तन को कब्जे में ले लिया गया।

By Satish chand shuklaEdited By: Publish:Sat, 27 Feb 2021 02:53 PM (IST) Updated:Mon, 01 Mar 2021 07:42 AM (IST)
महराजगंज में मिली पाल और प्रतिहार के संघर्ष की निशानी, खुदाई के दौरान मिले सिक्‍कों से राज खुला
महराजगंज के बृजमनगंज में मिले चांदी के सिक्के ।

गोरखपुर, जेएनएन। कन्नौज पर वर्चस्व को लेकर आठवीं सदी से शुरू होकर 200 वर्ष तक चले पाल और गुर्जर प्रतिहार राजवंश के बीच संघर्ष का गवाह नेपाल की तराई में बसा जिला महराजगंज भी रहा है। सरयू नहर परियोजना के तहत चल रही खुदाई के दौरान जिले के बृजमनगंज क्षेत्र के सोनाबंदी लोटन गांव में इस संघर्ष की निशानी मिली है। वहां जमीन के नीचे गड़े एक बर्तन में चांदी के सिक्के मिले हैं, प्राथमिक अध्ययन में जिनका इतिहास पाल और प्रतिहार काल से जुड़ रहा है। ऐसे में यह सिक्के कम से कम 1200 वर्ष पुराने माने जा रहे हैं। सिक्कों के मिलने से पाल और प्रतिहार राज्य के बीच व्यापारिक संबंध की भी संभावना व्यक्त की जा रही है।

नौ दिसंबर 2020 को जब खुदाई के दौरान यह सिक्के एक धातु के बर्तन में मिले तो गांव का एक व्यक्ति उन उन्हें लेकर अपने घर चला गया। लोगों ने जब पुलिस को सूचना दी तो व्यक्ति को तलाश कर बर्तन को कब्जे में ले लिया गया। पुलिस ने उस बर्तन को तोड़कर देखा तो उसमें छोटे-छोटे आकार के प्राचीन चांदी के सिक्के मिले। मिट्टी लिपटे उन सिक्कों का वजन चार किलो 244 ग्राम पाया गया। इसे लेकर पुलिस ने क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी नरसिंह त्यागी से संपर्क साधा तो उन्होंने सिक्कों को राजकीय बौद्ध संग्रहालय में संरक्षित करने की संस्तुति की। इस क्रम में वह सिक्के 19 फरवरी को संग्रहालय में लाए गए। संग्रहालय प्रशासन ने उसे साफ कराकर अध्ययन शुरू किया तो प्राथमिक रूप से इन सिक्कों की ऐतिहासिकता पाल और प्रतिहार काल से जुड़ती पाई। हालांकि प्राथमिक अध्ययन की पुष्टि के लिए संग्रहालय की ओर से शोध अध्ययन का सिलसिला जारी है।

मिहिर भोज व देवपाल  के काल के हो सकते हैं सिक्के

प्राथमिक अध्ययन में कुछ सिक्कों के प्रतिहार काल से जुडऩे की वजह उसपर उभरा वाराह का चित्र है। शक्तिशाली प्रतिहार राजा मिहिर भोज के कुछ सिक्कों में उसे आदि वाराह भी माना गया है। इसके अलावा कुछ सिक्के पालवंशीय राजा देवपाल के काल माने जा रहे हैं क्योंकि उनमें वही निशान दर्ज हैं, जिनसे देवपाल के काल के सिक्कों की पहचान की जाती है।

चांदी के सभी सिक्‍के संरक्षित

राजकीय बौद्ध संग्रहालय, गोरखपुर के उपनिदेशक डा. मनोज कुमार गौतम का कहना है कि बृजमनगंज के सोनाबंदी लोटन गांव से मिले ऐतिहासिक चांदी के सिक्कों को संरक्षित कर लिया गया है। सिक्कों की साफ-सफाई के बाद शोध अध्ययन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। प्राथमिक अध्यययन में कुछ सिक्कों का इतिहास प्रतिहार और पाल राजाओं से जुड़ रहा है। बहुत जल्द इसे लेकर काल का संशय पूरी तरह दूर हो जाएगा। इन सिक्कों के मिलने से पूर्वांचल की सांस्कृतिक विरासत समृद्ध हुई है।

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