10 कारीगर, सात महीने और आठ टन के दो शेर Gorakhpur News
10 कारीगर मिलकर सात महीने में आठ टन के दो शेर तैयार कर पाते हैं। कड़ी मेहनत व कला की बारीकी के कारण इन आकृतियों की कीमत भी लाखों में होती है।
गोरखपुर, जेएनएन। मकराना मार्बल के शेर आंखों को सुकून देते हैं। घर की रौनक बढ़ाने वाली यह आकृति यूं नहीं बनती। एक मार्बल को शेर की आकृति देने में महीनों की मेहनत होती है। 10 कारीगर मिलकर सात महीने में आठ टन के दो शेर तैयार कर पाते हैं। कड़ी मेहनत व कला की बारीकी के कारण इन आकृतियों की कीमत भी लाखों में होती है।
ये हैं जयपुर के कारीगर
टाउनहाल स्थित कचहरी क्लब के मैदान में आयोजित शिल्प बाजार में जयपुर के कारीगर मकराना मार्बल की आकृतियां लेकर आए हैं। निजी आयोजनों में उन्हें यात्रा खर्च खुद वहन करना पड़ता है, लेकिन हस्तशिल्प को बढ़ावा देने वाले शिल्प बाजार में आने-जाने का खर्च सरकार देगी। उनकी दुकान पर शेर की आकृतियों को खूब पसंद किया जा रहा है। यहां बैठे और चलते हुए शेर की आकृतियां हैं। दुकान संचालक फुरकान के अनुसार बड़े आकार के मकराना मार्बल को गढ़कर आकृतियां दी जाती हैं। बेस से लेकर दांत, पूंछ, सिर के बाल तक उसी मार्बल के होते हैं। इन आकृतियों में कोई जोड़ नहीं होता है। सबसे अधिक समय फिनिशिंग में लगता है।
उठाने के लिए करते हैं क्रेन का इस्तेमाल
फुरकान बताते हैं कि इन आकृतियों को एक से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। उन्हें उठाने के लिए क्रेन का सहारा लिया जाता है। उन्होंने बताया कि गोरखपुर में दोनों शेरों की कीमत चार लाख रुपये निर्धारित है।
और भी हैं आकृतियां
मकराना मार्बल से ही बुद्ध, फाउंटेशन, हाथी व घोड़े की आकृति भी बनाई जाती है। आकार के अनुसार इसकी कीमत 15 हजार से लेकर लाखों रुपये तक होती है।
शिल्प बाजार में उमड़े लोग
शिल्प बाजार में बड़ी संख्या में लोग आए। पश्चिम बंगाल से आए बांस के सामान, लखनऊ का चिकन, बस्ती की जरी, अंबेडकरनगर के हैंडलूम वस्त्रों की दुकानों पर लोगों की भीड़ रही। बाजार में खाने की दुकानों पर भी लोगों ने व्यंजनों का स्वाद लिया।