गंगा बाबू की किताबों से दूर होती थी टीबी की बीमारी

- हास्य सम्राट की मिली थी उपाधि हिदी साहित्य में जगाई थी एक अलग अलख गोंडा आज जब हर ओर

By JagranEdited By: Publish:Wed, 21 Apr 2021 10:17 PM (IST) Updated:Wed, 21 Apr 2021 10:17 PM (IST)
गंगा बाबू की किताबों से दूर होती थी टीबी की बीमारी
गंगा बाबू की किताबों से दूर होती थी टीबी की बीमारी

- हास्य सम्राट की मिली थी उपाधि, हिदी साहित्य में जगाई थी एक अलग अलख

गोंडा: आज जब हर ओर कोरोना का संकट है, हर कोई हंसने की वजह खोज रहा है। पॉजिटिव सोच विकसित करने पर जोर दिया जा रहा है ऐसे में गंगा बाबू की यादें ताजा हो जाती है। वर्ष 1913-15 में गंगा बाबू की पुस्तकों का जादू ऐसा था, जिसने हर किसी का मन मोह लिया। उनकी पुस्तकें भुवाली सेनोटोरियम नैनीताल में टीबी के मरीजों को पढ़ने के लिए दी जाती थीं, जिसे पढ़कर मरीज हंस-हंसकर लोटपोट हो जाते थे। इससे वह बीमारी से त्वरित लाभ पाते थे। हास्य सम्राट की उपाधि से विभूषित गंगा बाबू के ठहाके आज भी लोगों की जुबां पर है। एक नजर में जीपी श्रीवास्तव: 23 अप्रैल 1890 को बिहार के छपरा शहर में स्थित ननिहाल में जन्मे जीपी श्रीवास्तव के पिता रघुनंदन प्रसाद रेलवे में नौकरी करते थे, जिसके कारण वह गोंडा शहर के गुड्डूमल चौराहे के पास अपना मकान बनाकर रहते थे। शिक्षा पूरी करने के बाद वह गोंडा आए। यहां पर लोग उन्हें गंगा बाबू के नाम से जानने लगे। वकालत शुरू की लेकिन उसमें उनका मन नहीं लगा। सर्वे कमिश्नर बन गए। उनकी लेखनी बंद नहीं हुई। वह अपने लिखे नाटकों में अभिनय भी करते थे। वर्ष 1976 में 30 अगस्त को उनका निधन होने के बाद भी आज वह साहित्यप्रेमियों की दिलों पर राज कर रहे हैं। गुड्डूमल चौराहे के पास उनका गंगा आश्रम आज खंडहर स्थिति में है। हालांकि रेलवे ने उनकी याद में गोंडा-बहराइच रेल खंड पर गंगा धाम नामक छोटा सा रेलवे स्टेशन बनाया है। समाजसेवी धर्मवीर आर्य गंगा बाबू की स्मृतियों को संजोने में लगे हुए हैं। रचनाएं

- पैदाइशी मजिस्ट्रेट, तीस मार खां, दुमदार आदमी, मुर्दा बाजार, नोकझोंक, मीठी हंसी, गुदगुदी, आकाश पाताल, चुटकियां, इकलौता जूता, दिल ही तो है, बीरबल जिदा है, इधर जनाना-उधर मर्दाना, श्रीमान घोंघा बसंत, हैलो मिस्टर चंडूल, भड़ाम सिंह शर्मा, बिलायती उल्लू, स्वामी चौखटानंद, भैया अकिल बहादुर जैसी रचनाओं के माध्यम से गंगा बाबू ने पाठकों का खूब मनोरंजन कराया। कहानी संग्रह 'लंबी दाढ़ी' व उपन्यास 'लतखोरी लाल' भी प्रकाशित हुआ। सबसे चर्चित उपन्यास 'दिल जले की आह' आज भी लोगों की जुबान पर है।

chat bot
आपका साथी