सरयू नदी में स्नान से नष्ट हो जाते हैं पाप
- सरयू से जुड़ा है युगों का नाता पौराणिक स्थल बढ़ा रहे शोभा कमलकिशोर सिंह परसपुर
- सरयू से जुड़ा है युगों का नाता, पौराणिक स्थल बढ़ा रहे शोभा
कमलकिशोर सिंह, परसपुर (गोंडा) : सरयू नाम सुमंगल मूला, लोक वेद मत मंजुल कूला। सतयुग में ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मां सरयू नदी की उत्पत्ति भगवान विष्णु जी के नेत्र से हुई थी। इसलिए सरयू का एक नाम नेत्रजा भी है। इसी सरयू नदी के तट पर बसी अयोध्या नगरी में त्रेतायुग में भगवान विष्णु अयोध्या के राजा दशरथ के घर राम के रूप में अवतार लेकर इस पावन नदी में अठखेलियां करते थे।
इस पावन नदी के तट पर सतयुग में भगवान विष्णु ने पसका सूकरखेत में सूकर (सूअर) के रूप में अवतार लेकर दैत्य हिरण्याक्ष का वध करके माता पृथ्वी को उसके चंगुल से मुक्त कराया था।
कलयुग में संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी इसी नदी के पावन तट पर बसे राजापुर ग्राम में जन्म लेकर गुरु नरहरिदास से शिक्षा ग्रहण करके रामचरितमानस महाकाव्य की रचना की। नदी के किनारे तमाम पौराणिक व ऐतिहासिक मंदिर आज भी विद्यमान हैं जो लाखों श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र हैं।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस महाकाव्य में सरयू नदी को कलियुग में पापनाशिनी बताया है। सरयू सरि कलि कलुष नशावनि। इस नदी में स्नान करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है। ऐसी लोगों की मान्यता है। सरयू जयंती आज
-सनातन धर्म परिषद के अध्यक्ष डॉ. स्वामी भगवदाचार्य ने बताया कि तुलसी जन्मभूमि न्यास व सनातन धर्म परिषद के संयुक्त तत्वावधान में गुरुवार को सरयू नदी के तुलसीघाट पर सरयू जयंती का आयोजन किया गया है।
शाम छह बजे इसकी शुरुआत सरयू आरती के साथ होगी। इसमें साधु-संत महात्मा व श्रद्धालु शामिल होंगे।