अंबर ने खोला अमृत का खजाना, नेमत समझ है लौटाना

-बारिश की बूंदों को सहेजने के लिए सभी को करनी होगी पहल

By JagranEdited By: Publish:Wed, 15 Jul 2020 11:33 PM (IST) Updated:Thu, 16 Jul 2020 06:10 AM (IST)
अंबर ने खोला अमृत का खजाना, नेमत समझ है लौटाना
अंबर ने खोला अमृत का खजाना, नेमत समझ है लौटाना

गोंडा : कुदरत की नेमत कहें या फिर अंबर से बरसी अमृत की बूंदें, हमें ये सौगात मुफ्त में जरूर मिली है, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि हम बेपरवाह हो जाएं। यदि हम अभी नहीं जागे तो आने वाला कल मुश्किल भरा हो सकता है। अगर हम अपनी आदतें सुधार लें तो भी पानी की काफी बचत हो सकती है। अंधाधुंध जल का दोहन रोकने के साथ ही बारिश के पानी का संचयन करने के लिए हर नागरिक को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। जल संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर वर्ष 16 जुलाई से भूजल सप्ताह मनाया जाता है।

इनसेट

कैसे होती है पानी की बर्बादी

- पानी की टोटी खुली छोड़ने से

- गाड़ी धुलाई के दौरान

- घरों की छतों पर वॉटर हार्वेस्टिग सिस्टम न होने के कारण जल संचयन के लिए क्या हुए इस बार इंतजाम

-35 किलोमीटर की लम्बाई में मनवर नदी का पुनरुद्धार

- 953 तालाबों का जीर्णोद्धार शुरू

- 17 तालाबों का जीर्णोद्धार कार्य पूरा

- 500 ग्राम पंचयतों में नाला सफाई कार्य

- 700 सोकपिट का निर्माण कार्य

जल संचयन के तरीके क्या हैं

- घर की छत पर रेन वॉटर हार्वेस्टिग सिस्टम की स्थापना कराएं

- सिचाई के लिए ड्रिप इरीगेशन सिस्टम का उपयोग करें

- बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिए कूप का जीर्णोद्धार कराएं

- यूकेलिप्टिस के पौधे न लगाएं पिछली बार की कोशिश कितनी रंग लाई

- मनरेगा के तहत बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिए पिछली बार भी तालाबों का जीर्णोद्धार कराया गया था। कोशिश तो हुई, लेकिन पूरी तरह से सफल नहीं हो सकी। नदियों को पुनर्जीवित करने की मुहिम भी गत वर्ष शुरू नहीं हो सकी थी। ऐसे ही बह जाता पानी

- जिले में हरसाल मानसून में औसतन बारिश का अनुमान 1151 मिली मीटर है। इस वर्ष जून व जुलाई में करीब 900 मिली मीटर बारिश रिकॉर्ड की जा चुकी है। जिले में बारिश के पानी को स्टोर करने के लिए न तो चेकडैम बना है और न ही कोई अन्य व्यवस्था। ऐसे में करीब 60 प्रतिशत पानी ऐसे ही बह जाता है। जल संरक्षण के लिए इस बार काफी कार्य कराए गए हैं। मनवर नदी का पुनरुद्धार, तालाबों का जीर्णोद्धार, नालों की सफाई के साथ ही गांव में सोकपिट भी बनवाए गए हैं। जिले में भूजल स्तर अच्छा है, फिर भी जल संचयन के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं।

-शशांक त्रिपाठी, सीडीओ गोंडा

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