तस्करों से छूटे गोवंशीय पशुओं की 'करुणा' बनी 'पालनहार'

गोंडा : तस्करों के जाल में फंसे गोवंशीय पशुओं को पुलिस छुड़ा तो किसी तरह लेती थी, लेकिन इनको पालने के

By JagranEdited By: Publish:Thu, 15 Nov 2018 10:13 PM (IST) Updated:Thu, 15 Nov 2018 10:13 PM (IST)
तस्करों से छूटे गोवंशीय पशुओं की 'करुणा' बनी 'पालनहार'
तस्करों से छूटे गोवंशीय पशुओं की 'करुणा' बनी 'पालनहार'

गोंडा : तस्करों के जाल में फंसे गोवंशीय पशुओं को पुलिस छुड़ा तो किसी तरह लेती थी, लेकिन इनको पालने के लिए कोई इंतजाम नहीं थे। ऐसे में ये पशु भूख के मारे सड़क पर ही दम तोड़ देते थे। आचार्य विनोवा भावे की प्रेरणा से मनकापुर के आज्ञाराम ने गोसेवा का संकल्प लिया और 1993 में सिसवा गांव में करुणा नाम से एक गोशाला की स्थापना कराई। यहां तस्करों से मुक्त कराए जाने वाले गोवंशीय पशुओं के पालने की व्यवस्था बनाई गयी। गोसेवक आज्ञाराम तो नहीं रहे, लेकिन इस गोशाला में आज भी 80 पशुओं को पाला जा रहा है। 16 नवंबर को गोपाष्टमी के अवसर पर गोमाता की पूजा के साथ ही गो-भक्तों को सम्मान से नवाजा जाएगा।

लोकतंत्र सेनानी के रूप में मिली पहचान

-सिसवा गांव के रहने वाले आज्ञाराम शुक्ल की गोसेवा में बड़ी दिलचस्पी थी। उन्होंने गांव के समीप ही गोशाला की स्थापना कराई थी। गोशाला में 100 गोवंशीय पशुओं रखने की व्यवस्था है। गोशाला का सफल संचालन होने के बाद इसका पंजीकरण भी हुआ। सरकार ने लोकतंत्र सेनानी के रूप में इन्हें पेंशन भी मंजूर कर दी थी। वर्ष 2013 में लोकतंत्र सेनानी का निधन हो गया। पत्नी गायत्री देवी गोशाला की संस्थापिका हैं। पानी की पर्याप्त व्यवस्था के साथ ही चारे देने के लिए कुछ सरकारी मदद भी मिलती है। देखभाल के लिए 30 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से सरकारी मदद मिलती है, जबकि अन्य सहयोग कुछ व्यापारी भी कर देते हैं। गोसेवक विद्या प्रसाद शुक्ल गोवंश की देखभाल करते हैं।

गोपाष्टमी का महत्व

- गोपाष्टमी ब्रज में संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। गायों की रक्षा करने के कारण भगवान श्रीकृष्ण का अतिप्रिय नाम 'गो¨वद' पड़ा। कार्तिक, शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। 8वें दिन इंद्र अहंकार का त्यागकर भगवान की शरण में आये। कामधेनु ने श्रीकृष्ण का अभिषेक किया और उसी दिन से इनका नाम गो¨वद पड़ा। इसी समय से अष्टमी को गोपोष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा, जो कि अब तक चला आ रहा है।

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