एक कार्य की पांच बार निविदा, फिर भी अधर में

जासं गाजीपुर नित नए-नए कारनामों ने बेसिक शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार की कलई खोल कर रख दी है। इस बार मामला कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में खाद्यान व दैनिक सामानों की आपूर्ति का है। एक-दो नहीं बल्कि पांच बार निविदा प्रकाशित हुई फिर भी मामला अधर में है। यह हाल तब है जबकि इसे

By JagranEdited By: Publish:Thu, 17 Oct 2019 09:40 PM (IST) Updated:Thu, 17 Oct 2019 09:40 PM (IST)
एक कार्य की पांच बार निविदा, फिर भी अधर में
एक कार्य की पांच बार निविदा, फिर भी अधर में

जासं, गाजीपुर : नित नए-नए कारनामों ने बेसिक शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार की कलई खोल कर रख दी है। इस बार मामला कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में खाद्यान व दैनिक सामानों की आपूर्ति का है। एक-दो नहीं बल्कि पांच बार निविदा प्रकाशित हुई फिर भी मामला अधर में है। यह हाल तब है, जबकि इसे बीते 28 फरवरी तक ही पूर्ण कर लेने का शासन ने निर्देश जारी किया था। मजे की बात यह कि हर बार की निविदा में नियम व शर्ते भी बदलते रहे। मामला जिलाधिकारी के भी संज्ञान में था, जांच भी हुई और इसमें बड़े पैमाने पर खामियां भी मिलीं, लेकिन कार्रवाई कुछ नहीं हुई।

शासनादेश जारी हुआ था कि कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों के संचालन के लिए ई-प्रणाली द्वारा बीते 28 फरवरी तक प्रत्येक दशा में टेंडर प्रक्रिया पूरी कर ली जाए। चेतावनी भी दी गई थी कि अगर नहीं हुआ तो बीएसए व सहायक वित्त एवं लेखाधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। इसके तहत 22 फरवरी को निविदा प्रकाशित हुई। चार मार्च तक इसे खोलना था, नहीं खोला गया। बीएसए द्वारा कारण दिया गया कि चुनाव आचार संहिता के कारण निविदा नहीं खोली जा सकी, जबकि निविदा प्रकाशित होने के करीब 15 दिन बाद आदर्श आचार संहिता लागू हुआ था। 26 जून को दूसरी बार एक ही तिथि में एक ही विज्ञापन खाद्यान्न, स्टेशनरी व यूनिफार्म के लिए प्रकाशित हुई लेकिन दोनों में नियम व शर्त अलग-अलग रखा गया। इतना ही नहीं एक प्रधानाध्यापिका के पति को कार्य दे दिया गया, जबकि साफ निर्देश था कि विद्यालय के किसी सगे संबंधी को यह नहीं मिलेगा। बहरहाल, शिकायत के बाद जिलाधिकारी के हस्तक्षेप पर निविदा निरस्त कर दी गई। 27 जुलाई को पुन: तीसरी बार निविदा हुई। इसमें बिना कागजातों को जांचे जखनियां के नीलम इंटर प्राइजेज को कार्य दे दिया गया। मामला डीएम के यहां पहुंचा तो उन्होंने सीडीओ को जांच सौंपी। जांच में मिला कि हैसियत प्रमाणपत्र नीलम यादव पत्नी सुबाष सिंह यादव के नाम है और चरित्र प्रमाणपत्र नीलम यादव पत्नी बुच्चन सिंह यादव का लगाया गया है। सीडीओ की जांच रिपोर्ट पर फिर निविदा निरस्त हो गई। 25 अगस्त को चौथी बार निविदा प्रकाशित हुई, लेकिन अंतिम तिथि तक इंटरनेट पर अपलोड ही नहीं किया गया। नौ अगस्त को पुन: पांचवीं बार निविदा हुई। ऐसे में सवाल बड़ा और अहम है कि पांच बार निविदा क्यों प्रकाशित करनी पड़ी। जांच हुई, बड़े पैमाने पर खामियां भी मिलीं, लेकिन कोई कार्रवाई भी नहीं हुई। आखिर ऐसा किस मंशा और किसे बचाने के लिए किया जा रहा है।

chat bot
आपका साथी