श्रद्धा और समर्पण का पर्व है पितृपक्ष
पितृ पक्ष का प्रारंभ भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा ।
जागरण संवाददाता, खानपुर (गाजीपुर) : पितृ पक्ष का प्रारंभ भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 20 सितंबर सोमवार से हो रहा है। लोग पितरों को खुश करने के लिए श्राद्ध आदि के लिए तैयारी कर रहे हैं।
सनातन शास्त्र में देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृऋण तीन प्रकार के ऋण बताए गए हैं। पितृऋण उतारने के लिए ही पितृपक्ष में अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म किया जाता है। इस अवधि में उन्हें जो श्रद्धा से अर्पित किया जाता है वो उसे खुशी-खुशी स्वीकार करते हैं। करमपुर के पं. शुभम पाण्डेय ने बताया कि किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण ना किया जाए तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती और वो भूत के रूप में इस संसार में ही रह जाता है। देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए। भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृपक्ष श्राद्ध होते हैं। बहदिया के कर्मकांडी ब्राह्मण रामधनी त्रिपाठी बताते हैं कि यदि पितर रुष्ट हो जाए तो मनुष्य को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। श्राद्ध में तिल, चावल, जौ और कुशा का सर्वाधिक महत्त्व होता है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिडी रूप में अर्पित करना चाहिए। श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नीयत तिथि पर हमारे घर आते हैं। पूर्णिमा श्राद्ध 20 सितंबर दिन सोमवार से शुरू होकर तेरहवें दिन द्वादशी श्राद्ध, संन्यासी, यति, वैष्णवजनों का श्राद्ध होता है और सोलहवें दिन अमावस्या श्राद्ध, अज्ञात तिथि पितृ श्राद्ध, सर्वपितृ अमावस्या समापन 06 अक्टूबर दिन मंगलवार को समाप्त हो जाएगा।