हिदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक हजरत शाहनिद पीर की मजार पर आज उमड़ेंगे जायरीन
जागरण संवाददाता मुहम्मदाबाद (गाजीपुर) हिदू मुस्लिम एकता के प्रतीक नगर के शाहनिदा स्थित हजरत शाहनिंद पीर गाजी रहमतुल्ला अलैह का उर्स बुधवार को मनाया जाएगा।
जागरण संवाददाता, मुहम्मदाबाद (गाजीपुर) : हिदू मुस्लिम एकता के प्रतीक नगर के शाहनिदा स्थित हजरत शाहनिद पीर गाजी रहमतुल्ला अलैह के 721 वें उर्स के मौके पर बुधवार को जियारत के लिए जायरीनों की काफी भीड़ उमड़ेगी। मजार पर प्रदेश के बाहर के लोग भी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। खास यह कि इसमें मुस्लिम से ज्यादा हिदू धर्मावलंबियों की संख्या होती है।
गाजीपुर उजियार भरौली जाने वाली एनएच 31 पर शाहनिदा के पास हजरत शाहनिद पीर का मजार है। यहां सप्ताह में दो दिन गुरुवार और शुक्रवार को दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालु आते हैं। पीर बाबा के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। कथाओं के अनुसार काफी समय पूर्व क्षेत्र के सेमरा गांव के जगत नारायण राय पुलिस विभाग में नौकरी करते थे। आधी रात को वह अवकाश लेकर घर जाने के लिए शाहनिदा में किसी वाहन से उतरे। उनके पास सामान ज्यादा था। ऐसे में उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा थ। इस बीच एक व्यक्ति उनके पास पहुंचा और उनका सामान ले जाने के लिए तैयार हो गया। जगत नारायण अपना बक्सा आदि सामान उस व्यक्ति के सिर पर रखकर खुद आगे आगे चलने लगे। कुछ दूर आगे जाने पर जब देखा तो सामान लिए वह आदमी गायब था। अब परेशान हाल में मन मसोसकर अपने घर पहुंचे।
उधर स्वजन पहले से ही उनका इंतजार कर रहे थे। जगत नारायण ने बताया कि उनका सामान कोई ले गया। मगर घरवालों ने बताया कि एक व्यक्ति उनका सामान लादकर लाया था और उसे दे गया है। इस पर सिपाही को विश्वास ही नहीं हुआ कि आखिर वह आदमी बिना नाम, पता जाने उनके घर कैसे पहुंच गया। उनके मन में विचार आया कि यकीनन वह क ोई साधारण व्यक्ति नहीं बल्कि शाहनिद पीर बाबा ही थे। उसके बाद से जगत नारायण बाबा की मजार पर आकर सेवा सत्कार में जुट गए। सिपाही के मरने के बाद उनकी मजार बाबा की मजार के ठीक बगल में बना दी गई। आज भी लोग हजरत शाहनिद पीर के साथ सिपाही के मजार पर भी सिर झुका कर पूजन अर्चन करते हैं। उन्हें सिपाही बाबा के नाम से लोग जानते हैं। मान्यता के अनुसार मजार पर मांगी गई मन्नत अवश्य पूरी होती है। उर्स के मौके पर मजार के इर्द-गिर्द काफी बड़ा मेला लगता है। सुबह कुरान खानी तो शाम को चादर पोशी के साथ उर्स का समापन होता है।