संस्कारशाला: सच्चा दोस्त गहने की तरह कीमती होता है
सच्चा मित्र स्वार्थो से ऊपर उठकर मित्र को बुराई की राह पर चलने से बचाता है। सदैव उसे सही राह पर चलाने की कोशिश करता है।
जब भी बात मित्रता की होती है तो कृष्ण और सुदामा का नाम सबसे ऊपर आता है। एक बार सुदामा ने कृष्ण से पूछा कि दोस्ती का असली मतलब क्या है, तब कृष्ण ने हंसकर कहा, जहां मतलब होता है, वहां दोस्ती नहीं होती। वास्तव में मुश्किल समय में साथ देने वाला व्यक्ति ही सच्चा मित्र होता है। सच्चा मित्र स्वार्थो से ऊपर उठकर मित्र को बुराई की राह पर चलने से बचाता है। सदैव उसे सही राह पर चलाने की कोशिश करता है। संकट के समय में भी साथ नहीं छोड़ता है।
मित्रता दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच का ईश्वरीय संबंध है। मित्रता एक-दूसरे की देखभाल और समर्थन का नाम है। यह एक-दूसरे पर विश्वास, भावनाओं और उचित समझ पर आधारित है। सच्चे दोस्त को गहने की तरह कीमती माना जाता है। सच्चा मित्र हमेशा सफलता का मार्ग दिखाता है। मौज-मस्ती में साथ देने वाले मित्र कदम-कदम पर मिल जाते हैं, मगर सच्चे मित्र बहुत कम मिलते हैं। अपने जीवन में सच्चा दोस्त पाने वाला इंसान भाग्यशाली होता है। सच्ची मित्रता जीवन में कई प्रकार के यादगार, मीठे और खुशनुमा अनुभव देती है। किसी भी व्यक्ति के जीवन का मित्रता सबसे कीमती उपहार है, जिसे कोई भी खोना नहीं चाहता है। दोस्ती प्यार का एक समर्पित एहसास होता है, जिसे हम अपने मित्र के साथ साझा कर सकते हैं। मित्रता में कोई भी भेदभाव की भावना नहीं होती है। ईश्वर से हमें हमेशा यही प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें स्वार्थी मित्रों से बचाए। लोग मित्र बनाने से पहले उनके आचरण तथा प्रकृति का ध्यान नहीं रखते हैं। वह केवल उनकी बाहरी विशेषताओं पर मुग्ध हो जाते हैं, जबकि कोई व्यक्ति जानवर भी खरीदता है तो उसकी अच्छाई-बुराई को परख लेता है। किसी विद्वान ने भी कहा है कि एक विश्वासपात्र मित्र से बड़ी सुरक्षा होती है। मित्रता व प्रेम के लिए यह आवश्यक नहीं है कि दो लोगों के आचरण में समानता हो, जैसे राम तथा लक्ष्मण एक-दूसरे के विपरीत थे। व्यक्ति को अपने मित्रों का चुनाव सदैव सोच-समझकर करना चाहिए। सच्चे मित्र हृदय में रहते हैं और रक्त जैसे तन में बहते हैं, जो किया कृष्ण ने सुदामा से मित्रता उसी को कहते हैं।
कृष्णा सिंह, प्रधानाचार्य, दिल्ली पब्लिक स्कूल, सिद्धार्थ विहार ----
हसीन