छत, दीवार और फर्श बनाने के काम आ सकती है पराली

मानव संसाधन विकास केंद्र (एचआरडीसी) गाजियाबाद में कृषि-बायोमास अपशिष्ट का उपयोग रोडमैप एवं रणनीति विषय पर आयोजित आनलाइन संगोष्ठी में विज्ञानियों ने ये विचार रखे।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 28 Oct 2020 07:53 PM (IST) Updated:Wed, 28 Oct 2020 07:53 PM (IST)
छत, दीवार और फर्श बनाने के काम आ सकती है पराली
छत, दीवार और फर्श बनाने के काम आ सकती है पराली

जागरण संवाददाता, गाजियाबाद : दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारक बनी पराली बड़े काम की है। पराली का सही उपयोग किया जाए तो यह छत, दीवार और फर्श बनाने के काम में भी आ सकती है। मानव संसाधन विकास केंद्र (एचआरडीसी) गाजियाबाद में कृषि-बायोमास अपशिष्ट का उपयोग, रोडमैप एवं रणनीति विषय पर आयोजित आनलाइन संगोष्ठी में विज्ञानियों ने ये विचार रखे।

काउंसिल आफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआइआर) के महानदिशेक डॉ. शेखर चि. मांडे के निर्देशन में इसी साल जुलाई से विशेष अभियान के तहत इस प्रकार की संगोष्ठियों का आयोजन किया जा रहा है। इसका मूल उद्देश्य विज्ञानियों व औद्योगिक समूहों के बीच विश्वास व सामंजस्य बिठाना है, जिससे प्रदूषण नियंत्रण पर गंभीरता से काम किया जा सके। बुधवार को हुई संगोष्ठी में एम्प्री भोपाल (एडवांस्ड मैटेरियल एंड प्रोसिस रिसर्च इंस्टीट्यूट) के निदेशक डॉ. अवनीश कुमार ने कहा कि पराली से बनी हाईब्रिडकंपोजिट से घरों में उपयोग होने वाली टाइल्स बनाई जा सकती हैं। उन्होंने कहा कि इन टाइल्स का प्रयोग छत, दीवार और फर्श बनाने में किया जा सकता है। यह सागौन से भी चार गुना तक मजबूत और हल्की हैं। आइएचबीटी (इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन बायो रिसोर्स टेक्नोलाजी) पालमपुर के निदेशक डॉ. संजय कुमार ने मंदिरों में फूल और अन्य अपशिष्ट से अगरबत्ती, धूपबत्ती व अन्य उत्पाद बनाने की जानकारी दी। संगोष्ठी का शुभारंभ एचआरडीसी गाजियाबाद के प्रमुख डॉ. आरके सिन्हा ने किया। वरिष्ठ विज्ञानी शोभना चौधरी, प्रोफेसर राजेश के. सैनी, डॉ. जी. नरहरि शास्त्री, प्रो. सत्यनारायण नारा, श्रुति अहूजा, अरुण कुमार साहू आदि मौजूद रहे।

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