शौर्यगाथा: सैनिकों का खून बहता देख अकेली महिला चिकित्सक ने भी उठा लिए थे हथियार

अभिषेक सिंह गाजियाबाद कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों की वीरता के आगे पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए थे। उस वक्त द्रास सेक्टर में 8 माउंटेन आर्टिलरी ब्रिगेड के साथ गाजियाबाद निवासी मेजर डॉ.प्राची गर्ग भी वहां कार्यरत थीं। उन्होंने युद्ध के दौरान 400 से अधिक सैनिकों का इलाज करने के साथ ही उनके अंदर दुश्मन को सबक सिखाने का जोश बढ़ाया। इनमें से कई सैनिक ऐसे रहे जिन्होंने प्राथमिक इलाज के बाद दोबारा दुश्मन पर हमला किया।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 28 Jul 2021 07:23 PM (IST) Updated:Wed, 28 Jul 2021 07:23 PM (IST)
शौर्यगाथा: सैनिकों का खून बहता देख अकेली महिला चिकित्सक ने भी उठा लिए थे हथियार
शौर्यगाथा: सैनिकों का खून बहता देख अकेली महिला चिकित्सक ने भी उठा लिए थे हथियार

अभिषेक सिंह, गाजियाबाद: कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों की वीरता के आगे पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए थे। उस वक्त द्रास सेक्टर में 8 माउंटेन आर्टिलरी ब्रिगेड के साथ गाजियाबाद निवासी मेजर डॉ.प्राची गर्ग भी वहां कार्यरत थीं। उन्होंने युद्ध के दौरान 400 से अधिक सैनिकों का इलाज करने के साथ ही उनके अंदर दुश्मन को सबक सिखाने का जोश बढ़ाया। इनमें से कई सैनिक ऐसे रहे, जिन्होंने प्राथमिक इलाज के बाद दोबारा दुश्मन पर हमला किया। आंखों के सामने सैनिकों का खून बहता देखकर उस वक्त मेजर प्राची ने राष्ट्र की रक्षा के लिए उन हथियारों को कमांड देना और चलाना सीखा, जिसका प्रशिक्षण पहले कभी नहीं लिया। युद्ध में भारत की जीत के पलों को याद कर प्राची का सिर आज भी गर्व से ऊंचा हो जाता है।

अशोक नगर निवासी प्राची गर्ग कहती हैं कि सेना में उनके परिवार ही नहीं खानदान का भी कोई व्यक्ति उनसे पहले कार्यरत नही रहा। देशसेवा की भावना से सैनिकों की जान बचाने के लिए वह भारतीय सेना में भर्ती हुईं। भर्ती के दौरान उनको दुश्मन पर हमला करने के लिए नजदीक से इस्तेमाल किए जाने वाले हथियारों जैसे पिस्टल आदि को चलाने का प्रशिक्षण दिया गया था। राकेट लांचर, तोप चलाने का प्रशिक्षण नहीं मिला, क्योंकि इसकी जरूरत सेना में कार्यरत चिकित्सकों को नहीं पड़ती है। वहीं कारगिल युद्ध के दौरान एक पल ऐसा भी आया जब उन्होंने राकेट लांचर, तोप चलाने और कमांड देने का प्रशिक्षण लिया। 13 है मेरा लकी नंबर, इसलिए बच गई जान: प्राची गर्ग उन दिनों कों याद कर कहती हैं कि 13 जून, 1999, यही वह तारीख है जब अचानक पाकिस्तानी फौज ने हम पर तेजी से बमबारी व गोलीबारी शुरू की। अचानक हुए इस हमले में जांबाज अधिकारियों के साथ कई सैनिक शहीद हुए। प्राची के करीब से गोली निकली। उस वक्त लगा कि अब क्या होगा, लेकिन अचानक फ्लाइट लेफ्टिनेंट के नचिकेता की याद आई, जिनको पाकिस्तानियों ने बंदी बनाकर प्रताड़ित किया था, लेकिन वे हौसला नहीं हारे। प्राची ने सोचा कि अगर युद्ध के दौरान उनको बंदी बना लिया गया तो क्या होगा। साथियों ने हौसला बढ़ाया और युद्ध के मैदान में डटी रहीं। वह बताती है कि 13 नंबर उनका लकी नंबर है, क्योंकि 13 अगस्त को उनका जन्म हुआ था। शायद यही वजह है कि वह हमले में बच गईं। युद्ध में उनके कई साथी वीरगति को प्राप्त हुए, जिनको याद कर आज भी आंखें नम हो जाती हैं। सभी सैनिकों ने अपने शौर्य का बेहतरीन प्रदर्शन किया। देश को उन पर हमेशा गर्व रहेगा। सहेज कर रखी हैं तस्वीरें: मेजर डॉ.प्राची गर्ग के पास कारगिल युद्ध के दौरान की फोटो हैं, जिनको उन्होंने सहेज कर रखा है। उनमें से एक तस्वीर उन्होंने दैनिक जागरण से साझा की है, जिसमें वह हाथ से नंबर घुमाने वाले फोन के जरिए सैनिकों से बात करतीं दिख रही हैं।

छह माह का सेवा विस्तार मिला था : मेजर डॉ.प्राची गर्ग के पिता जीएल गर्ग सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड में आफिसर सर्वेयर के पद पर कार्यरत थे। मां मुक्ता गर्ग सरकारी स्कूल में शिक्षिका थीं। प्राची ने आठवीं तक दिल्ली में पढ़ाई की। इसके बाद परिवार गाजियाबाद के अशोक नगर में आकर रहने लगा। सुशीला इंटर कालेज में 12वीं तक पढ़ाई पूरी कर मेडिकल की पढ़ाई के लिए वह आगरा गईं। वहां सरोजनी नायडू मेडिकल कालेज से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की। मदर टेरेसा को अपना आदर्श मानने वाली प्राची 1997 में पांच साल के लिए शार्ट सर्विस कमीशन पर सेना में भर्ती हुईं। वह कहती हैं कि सेना में भर्ती होना उनकी नियति थी। आपरेशन विजय व आपरेशन पराक्रम में भी भाग लिया। कारगिल युद्ध में उनके पराक्रम को देखते हुए छह माह के लिए उन्हें सेवा विस्तार दिया गया था।

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