कृषि कानून वापसी से निवेश होगा प्रभावित: अंकुर नेहरा
जागरण संवाददाता मोदीनगर किसानों का एक तबका जहां कृषि कानून वापस लेने के प्रधानमंत्री के
जागरण संवाददाता, मोदीनगर:
किसानों का एक तबका जहां कृषि कानून वापस लेने के प्रधानमंत्री के निर्णय पर खुशी जाहिर कर रहा है। वहीं, दूसरी ओर खेती-किसानी और नौकरीपेशा से जुड़ा वर्ग इसके दुष्परिणाम भी गिना रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत व आर्थिक मामलों के जानकार अंकुर नेहरा इस विषय पर खुलकर अपनी राय रखते हैं। उनका कहना है कि कृषि कानून वापस होने के निर्णय से विदेशी निवेश घटेगा। सरकार के इस निर्णय से कृषि क्षेत्र में निवेश करने का मन बना रहीं कंपनियों में निराशा देखने को मिल रही है।
दरअसल, जब सरकार ने बिचौलियों को खत्म कर किसानों से उपज की सीधे खरीद का कानून बनाया तो खाद्य सामग्री बनाने वाली बड़ी कंपनियों को तसल्ली हुई कि वे बिना किसी कमीशन दिए किसान से सीधे उपज खरीद सकेंगी। इससे न सिर्फ किसान को उपज का ज्यादा मूल्य मिलता बल्कि कंपनियों को बिचौलियों को बिना कुछ दिए सस्ते में सामग्री उपलब्ध हो जाती। इसी लाभ को देखते हुए कंपनियां कृषि क्षेत्र में निवेश करतीं। कहीं न कहीं कानून बनने के बाद उन्होंने इसका पूरा खाका भी तैयार कर लिया होगा। लेकिन अब कानून वापस होने से निवेशकों को झटका लगा है। सीधे तौर पर सरकार के इस कदम से निवेश प्रभावित होगा।
किसानों को भी इसका नुकसान है। कंपनियां गोदाम, कोल्ड स्टोरेज जैसे बुनियादी कृषि ढांचे तैयार करतीं, जिससे किसान आत्मनिर्भर होता और रोजगार की संभावनाएं इस क्षेत्र में बढ़तीं। कुल मिलाकर कृषि कानूनों के दूरगामी परिणाम राष्ट्रहित में सामने आते।
इसमें यह भी व्यवहारिक समस्या है कि हर राज्य की अलग-अलग समस्याएं हैं। जैसे पंजाब के किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मायने रखती है। लेकिन यह नियम दूसरे राज्यों के लिए इतना उपयोगी नहीं है। इन राज्यों के किसान हाइब्रिड माडल के पक्ष में हैं। देश के 80 फीसद किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम भूमि है। इन किसानों को सरकार की मदद की हर स्तर पर जरूरत है। खेती से लगातार किसानों का मन खट्टा हो रहा है। जब तक इस क्षेत्र में निवेश नहीं बढे़गा, तब तक खेती में किसानों की रूचि भी नहीं बढेगी और किसी भी देश, प्रदेश में निवेश तभी बढ़ता है, जब निवेशक को बेहतर माहौल मिले।
ऐसे में सरकार और किसान प्रतिनिधियों को चाहिए कि वे बिना किसी राजनीति के किसानों की बेहतरी के लिए संयुक्त प्रयास करें और असल समस्याओं पर बात कर उनका समाधान निकालें। जीएसटी परिषद की तरह राज्य और केंद्र सरकार के बीच समन्वय स्थापित कराने के लिए सलाहकार मंच बने और परामर्श के माध्यम से क्षेत्रवार समस्याओं का संकलन हो और उसी अनुसार कानून को लागू भी किया जाए।