दो बच्चे गोद लेने के लिए 21 दंपती कतार में

अभिषेक सिंह गाजियाबाद मेरठ सहारनपुर मंडल में पहली विशेषीकृत दत्तक ग्रहण इकाई गाजिय

By JagranEdited By: Publish:Wed, 17 Nov 2021 08:44 PM (IST) Updated:Wed, 17 Nov 2021 08:44 PM (IST)
दो बच्चे गोद लेने के लिए 21  दंपती कतार में
दो बच्चे गोद लेने के लिए 21 दंपती कतार में

अभिषेक सिंह, गाजियाबाद

मेरठ, सहारनपुर मंडल में पहली विशेषीकृत दत्तक ग्रहण इकाई गाजियाबाद में शुरू हो गई है। यहां पर गोद देने के लिए दो बच्चे हैं। उधर, गाजियाबाद में 21 दंपती को बच्चा गोद चाहिए। उन्होंने बच्चा गोद लेने के लिए सेंट्रल एडाप्शन रिसोर्स अथारिटी (कारा) के जरिए आवेदन किया है। हालांकि, जरूरी नहीं है कि आवेदन करने वाले दंपती को गाजियाबाद से ही बच्चा गोद मिले, कारा पर आवेदन करने वाले कोई भी दंपती यहां से बच्चा गोद ले सकते हैं।

जिला प्रोबेशन अधिकारी विकास चंद्र ने बताया कि लंबे समय से लावारिस बच्चों की देखभाल का कार्य कर रहे घरौंदा बालगृह के संचालक ओंकार सिंह को विशेषीकृत दत्तक ग्रहण इकाई खोलने की अनुमति शासन से मिली है। फिलहाल वह, इसे घरौंदा बालगृह से ही संचालित कर रहे हैं। जल्द ही नई बिल्डिंग किराए पर लेने की तैयारी की जा रही है।

ओंकार ने बताया कि पहले गाजियाबाद में विशेषीकृत दत्तक ग्रहण इकाई नहीं होने के कारण बच्चों को मथुरा और रामपुर भेजा जाता था, जहां कारा के जरिए आवेदन करने वाले दंपती को बच्चा गोद दिया जाता था। ऐसे में मेरठ और सहारनपुर मंडल के लोगों को बच्चा गोद लेने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी।

------------------- झाड़ियों में नवजात बेटियों को फेंके जाने पर दुखी होकर खोला बालगृह: मोदीनगर निवासी ओंकार सिंह ने बताया कि वर्ष 2007 में भरतपुरिया शिक्षा समिति नाम से एक एनजीओ बनाया और वसुंधरा में लाल बहादुर शास्त्री बाल वाटिका स्कूल खोला। वर्तमान में यहां 150 बच्चे निश्शुल्क पढ़ रहे हैं। 2012 में वसुंधरा में लाल बहादुर शास्त्री सुदर्शनम बालगृह खोला, जहां 10 से 18 साल तक के 15 लड़के हैं। झाड़ियों, सड़क और कूड़े के ढेर पर नवजात बच्चियों को फेंके जाने के मामले देखकर दुखी हुए और 2015 में गोविदपुरम में घरौंदा बालगृह खोला। जिसमें शून्य से 10 साल तक के 27 बच्चे हैं। पुलिस को लावारिस हालत में जो बच्चे मिलते हैं, उनको देखभाल के लिए बालगृह में भेजा जाता है। ओंकार काउंसलिग कर बच्चों के परिवार की तलाश करते हैं, 400 से अधिक बच्चों को उनके घर तक पहुंचा चुके हैं। ज्यादातर बच्चे उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और नेपाल के हैं।

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