जिला जेल में सबकी लाडो बनी पारो
मदन पांचाल गाजियाबाद पारो जिला कारागार डासना में हत्या अपहरण डकैती जैसे संगीन अपराध
मदन पांचाल, गाजियाबाद : पारो जिला कारागार डासना में हत्या, अपहरण, डकैती जैसे संगीन अपराधों में जेल में निरूद्ध कैदियों की लाडली बन गई है। उसके चर्चे सूबे की अन्य जेलों में भी हो रहे हैं। दरअसल, पारो एक बिल्ली का नाम है। यह नाम भी कैदियों ने ही रखा है। पारो जेल के प्रत्येक बैरक में सुबह से लेकर शाम तक घूमती रहती है। कैदी पारो को खाना खिलाने, दूध पिलाने से लेकर नहलाने तक का काम करते हैं। कैदी ही नहीं जेल के बंदी रक्षक, नंबरदार, डिप्टी जेलर, जेलर और जेल अधीक्षक तक पारो का दिन-रात ख्याल रखते हैं। सिर्फ ताजा दूध पसंद करती है पारो भूख लगने पर पारो कैदियों की गोद में जाकर बच्चे की तरह हरकतें करने लगती है। दूध तो वह केवल ताजा पीना ही पसंद करती है। रात को फ्रीज में रखे दूध को वह कतई मुंह नहीं लगाती है। आजीवन कारावास की सजा काट रहे बंदी नरेश ने दो साल पहले इस बिल्ली को पालना शुरू किया था। बाद में अमित, दिनेश जैसे सौ से अधिक कैदियों ने भी पारो के साथ वक्त गुजारना शुरू कर दिया। अब तो अनके कैदी पारो को बिना देखे खाना तक नहीं खाते हैं।
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कबूतरों की है भरमार जेल में बिल्ली के साथ ही कबूतर भी कैदियों ने पाल रखे हैं। इनकी निगरानी एवं दाना-पानी का इंतजाम भी कैदियों द्वारा ही किया जा रहा है। लकड़ी का कबूतरखाना भी बना रखा है। दिन में एक बार कबूतरों को उड़ने के लिए खोला जाता है। कबूतर उड़ने के बाद जेल में लौट आते हैं। रंग-बिरंगे कबूतरों का समूह जेल की फिजा को अलग रूप देते नजर आते हैं।
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जेल में सजायाफ्ता कैदी नरेश ने दो साल पहले बिल्ली के छोटे बच्चे को पालना शुरू किया। धीरे-धीरे यह बिल्ली बड़ी होने लगी। इसका नाम पारो रख दिया गया। अन्य बैरकों में भी पारो घूमती रहती है। दूध, ब्रेड, रोटी, बिस्कुट ही पसंद करती है। कैदियों ने पचास से अधिक कबूतर भी पाल रखे हैं।
-आलोक सिंह,वरिष्ठ अधीक्षक, डासना जेल