जिले में लगातार बढ़ते जा रहे आवारा कुत्ते, संख्या जानकर रह जाएंगे हैरान, रोजाना लोग हो रहे शिकार

जिले में एक दो नहीं बल्कि आवारा कुत्तों की संख्या 18 हजार है। जिनमें से बड़ी संख्या में कटखने कुत्ते हैं जो रोजाना लोगों को काट रहे हैं। जिले में कोई विभाग इन कुत्तों को दाना-पानी देने की जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं है।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Publish:Mon, 14 Jun 2021 03:28 PM (IST) Updated:Mon, 14 Jun 2021 03:28 PM (IST)
जिले में लगातार बढ़ते जा रहे आवारा कुत्ते, संख्या जानकर रह जाएंगे हैरान, रोजाना लोग हो रहे शिकार
यदि विभाग कुत्तों को निश्चित स्थान पर दाना-पानी की व्यवस्था कर दे तो कुत्तों की संख्या स्वत: कम हो जाएगी।

गाजियाबाद, जागरण संवाददाता। जिले में एक, दो नहीं बल्कि आवारा कुत्तों की संख्या 18 हजार है। जिनमें से बड़ी संख्या में कटखने कुत्ते हैं, जो रोजाना लोगों को काट रहे हैं। इस कारण सोसायटियों में कुत्तों का खौफ बढ़ रहा है। जिले में कोई विभाग इन कुत्तों को दाना-पानी देने की जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं है। लोगों की मांग है कि यदि कोई विभाग इन कुत्तों को निश्चित स्थान पर दाना-पानी की व्यवस्था कर दे तो सोसायटियों में कुत्तों की संख्या स्वत: कम हो जाएगी, लोगों को कटखने कुत्तों की समस्या से निजात मिलेगी।

यहां इतने कुत्ते

पशुपालन विभाग द्वारा की गई 20वीं पशुगणना 2019 के अनुसार जिले में तहसील सदर के अंदर आने वाले नगर निगम और ग्राम पंचायतों में साढ़े छह हजार, तहसील लोनी के अंदर आने वाले क्षेत्र में चार हजार और मोदीनगर तहसील के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में साढ़े सात हजार आवारा कुत्ते हैं। तीनों तहसील में कुल 13 हजार पालतू कुत्ते हैं। जिले में कुल कुत्तों की संख्या 31 हजार है।

ऐसे मिलता है दाना-पानी

जिले में आवारा कुत्तों को पशु प्रेमियों और स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा दाना-पानी दिया जाता है। इनकी संख्या बहुत कम है, ऐसे में कुत्ते दाना-पानी के लिए सोसायटियों और बाजारों में घुस जाते हैं। जिन सोसायटियों में लोग इनको दाना-पानी देने लगते हैं उसी सोसायटी में कुत्ते अपना डेरा जमा लेते हैं, इसके बाद वहां से बाहर नहीं निकलते हैं।

इसलिए हो जाते हैं कटखने

सोसायटियों में इक्का दुक्का लोग ही कुत्तों को दाना-पानी देते हैं। ऐसे में जिस दिन इन कुत्तों को दाना-पानी नहीं मिलता है उस दिन वह लोगों को काटने के लिए दौड़ने लगते हैं। सोसायटियों में कुत्तों को जबरदस्ती बाहर निकालने पशु प्रेमी विरोध करने लगते हैं तो विवाद की स्थिति बनती है।

अधिकारियों के बयान

लाकडाउन में लोग घरों में थे, ऐसे में कुत्तों को दाना-पानी नहीं मिला। जिस कारण वे कटखने स्वभाव के हो रहे हैं। नगर निगम कुत्तों की नसबंदी करवाता है, इसके साथ ही एंटी रैबीज वैक्सीन लगवाता है। मई से यह कार्य शुरू हो चुका है। कुत्तों को दाना-पानी देने की जिम्मेदारी हमारी नहीं है।

- डा. अनुज कुमार, पशु चिकित्सा एवं कल्याण अधिकारी।

हम पशुगणना करते हैं। पशुओं का उपचार करते हैं। उनको दाना-पानी मुहैया कराने की जिम्मेदारी हमारी नहीं है। कुत्तों के कारण लोगों को हो रही समस्या से निजात दिलाने की जिम्मेदारी नगर निगम, नगर पालिका परिषद, नगर पंचायतों की है।

- डा. महेश कुमार, मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी।

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