एक गाय के गोबर व गोमूत्र से तैयार हो रही छह एकड़ की खेती, है आसान सी प्रक्रिया

उपकृषि निदेशक डा वीबी द्विवेदी ने बताया कि गाय के गोबर व गोमूत्र के जरिये खाद तैयार करने का गुरमीत का फार्मूला फसल के लिए बहुत लाभदायक है इसे किसानों को अपनाना चाहिए। फसल में अधिक सिंचाई की भी जरूरत नहीं पड़ती और सहफसली खेती का लाभ मिलता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 23 Feb 2021 11:06 AM (IST) Updated:Tue, 23 Feb 2021 11:06 AM (IST)
एक गाय के गोबर व गोमूत्र से तैयार हो रही छह एकड़ की खेती, है आसान सी प्रक्रिया
ग्राम रसूलपुर में जैविक खाद तैयार करते गुरमीत सिंह। जागरण

गौरव भारद्वाज, हापुड़। सिर्फ एक देसी गाय के गोबर और मूत्र से तैयार जैविक खाद के जरिये 35 बीघा यानी छह एकड़ जमीन पर आराम से खेती की जा सकती है। यह तकनीक विकसित की है हापुड़ के रसूलपुर गांव निवासी गुरमीत सिंह (35) ने। वह नए भारत के विकासशील युवा किसान हैं। 12वीं तक शिक्षित गुरमीत के सरल से फार्मूले ने उन्हें राज्य स्तरीय पुरस्कार दिलाने की श्रेणी तक पहुंचा दिया। वह पांच साल से जैविक खाद से गन्ने की खेती कर रहे हैं। साथ ही गेहूं, धान सहित कई सब्जियों को बगैर किसी रासायनिक खाद और कीटनाशक के प्रचुर मात्र में पैदा कर रहे हैं।

आसान सी है प्रक्रिया: गुरमीत कहते हैं कि देसी नस्ल की एक गाय के गोबर और गोमूत्र से 25 एकड़ तक की खेती आसानी से की जा सकती है। एक एकड़ के लिए 10 किलो गोबर और पांच किलो गोमूत्र पर्याप्त है। गोबर और गोमूत्र का मिश्रण बनाने के बाद उसमें तीन किलो गुड़ और दो किलो बेसन मिलाकर, बरगद के पेड़ के नीचे की दो किलो मिट्टी डालकर 200 लीटर पानी मिलाया जाता है। सíदयों में इसे तैयार करने में 30 से 40 तो गर्मी में करीब 15 दिन लगते हैं। तैयार होने के बाद सिंचाई करते हुए पानी की नाली में ही खाद के मिश्रण को धीरे-धीरे छोड़ दिया जाता है। ऊपर से फसल में कीड़ों से बचाव के लिए नीम, भांग का छिड़काव किया जाता है। कहा कि यदि किसान खेती में रसायनिक खाद का इस्तेमाल करना छोड़ दें तो इससे न केवल सेहत में सुधार होगा बल्कि गोवंश के संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि लोग आज दूध न देने वाली गाय को बेसहारा छोड़ देते हैं। यह गलत है। यदि किसान गाय के गोबर और गोमूत्र को एकत्र करके बेचें तो भी मुनाफा कमा सकते हैं।

जानकारी लेने पहुंचते हैं किसान: गुरमीत की पद्धति को जानने जिले के अन्य गांवों के किसान भी उनके पास पहुंचते हैं। किसान सुखवीर बताते हैं कि गुरमीत असल तरीके से खेती करते हैं। जैविक खाद के इस्तेमाल से न केवल जमीन की उपजाऊ क्षमता बढ़ती, बल्कि इससे उगने वाली फसल भी सेहतमंद होती है, निरोगी होती है। एक अन्य किसान सुरेंद्र कुमार का कहना है कि जैविक खाद के इस्तेमाल से रासायनिक खाद का खर्च बचता है।

खांडसारी के निरीक्षक रविंद्र कुमार सिंह ने बताया कि लखनऊ में 27 फरवरी को राज्य स्तरीय दो दिवसीय गुड़ महोत्सव का आयोजन होना है। जिले से महोत्सव में शामिल होने के लिए जिले की एकमात्र खांडसारी इकाई का चयन किया गया है। जिसके संचालक गुरमीत सिंह हैं। यह पहली बार है जब जनपद से किसी गुड़ उत्पादक का नाम राज्य स्तरीय महोत्सव के लिए चुना गया है।

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