Muradnagar Roof Collapse Incident: निकायों के निर्माण कार्यों में भ्रष्ट अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत बरकरार
मुरादनगर के हादसे ने एक बार फिर साबित किया है कि सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद निकायों के निर्माण कार्यो में अधिकारियों और ठेकेदारों की दुरभिसंधि बरकरार है। फिलहाल मुख्यमंत्री ने मृतकों के परिवार वालों को दो-दो लाख रुपये देकर संवेदना व्यक्त की है।
लखनऊ। नगरीय निकायों में कराये जा रहे निर्माण कार्यो पर सवाल तो पहले भी उठते रहे हैं, लेकिन गाजियाबाद के मुरादनगर में एक साल के भीतर ही श्मशान भवन की छत गिरने और उसके नीचे दबकर 19 लोगों की मौत की घटना ने नगरपालिका अधिकारियों और ठेकेदारों की साठगांठ और उनकी कार्यशैली की पूरी तस्वीर को उजागर कर दिया है। कुछ अधिकारियों और ठेकेदारों की दुरभिसंधि इस हद तक जा पहुंचती है कि वे लोगों के जीवन को दांव पर लगाने में भी नहीं हिचकते।
विडंबना ही है कि जिस श्मशान भवन की छत गिरी है, उसमें घटिया निर्माण सामग्री के प्रयोग को लेकर कई बार नगरपालिका के वरिष्ठ अधिकारियों को शिकायत भेजी गई थी, जिसे न सिर्फ उन्होंने अनसुना किया, बल्कि गुणवत्ता का प्रमाणपत्र भी दे दिया।
अब यह बात भी खुलकर सामने आ रही है कि संबंधित ठेकेदार चेयरमैन का चहेता था और अधिकारियों ने भी उसे संरक्षण दे रखा था जिसकी वजह से वह मनमाने ढंग से काम करता रहा। कहने में कोई संकोच नहीं कि 19 लोगों की मौत के लिए वे सभी लोग हत्या के जिम्मेदार माने जाने चाहिए, जिनकी देखरेख में काम और भुगतान हुआ और एक दबंग ठेकदार जिनके संरक्षण में फलता-फूलता रहा।
नगर निगम या नगरपालिका स्थानीय सरकार हैं और नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए उत्तरदायी हैं। लेकिन यह दुखद है कि प्रदेश की लगभग हर नगरपालिका में अधिकारियों, ठेकेदारों का काकस अपने ढंग से काम करता है। इनके निर्माण कार्यो में घटिया सामग्री के उपयोग के सबसे अधिक आरोप लगते रहे हैं। प्रशासन भी सीधे तौर पर नगरपालिकाओं के कामकाज में दखल से परहेज ही करता है, जिसका फायदा यह काकस उठाता है और मनमानी करता है। मुरादनगर में श्मशान भवन के घटिया निर्माण की भी यही वजह रही।
प्रतीकात्मक।
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