सिर्फ पशु-पक्षियों की सेवा करने के लिए ही नौकरी कर रही हैं शिखा

शिखा ने बताया कि बचपन से ही उन्हें पशु-पक्षियों की सेवा करने में दिलचस्पी थी। पशु-पक्षी की सेवा में पूरा ध्यान लगाने की वजह से उनके स्वजन उनसे नाराज रहने लगे मगर उन्होंने पशु-पक्षियों की सेवा करनी नहीं छोड़ी।

By JP YadavEdited By: Publish:Tue, 17 Nov 2020 11:32 AM (IST) Updated:Tue, 17 Nov 2020 02:40 PM (IST)
सिर्फ पशु-पक्षियों की सेवा करने के लिए ही नौकरी कर रही हैं शिखा
पशु-पक्षियों के प्रति विशेष लगाव रखने वालीं शिखा।

गाजियाबाद [हसीन शाह] पशु-पक्षियों की खिदमत के लिए डॉ. शिखा कृष्णा ने निजी कालेज में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी कर रहीं हैं। हर माह उनकी पूरी तनख्वाह पशु-पक्षियों की देख-रेख, भोजन व इलाज पर खर्च हो जाती है। शहर में किसी भी स्थान पर पशु-पक्षी घायल होने की सूचना मिलने पर वह तुरंत मौके पर पहुंच जाती हैं। मूलरूप से मोदीनगर निवासी डॉ. शिखा कृष्णा की शादी 16 साल पहले वाराणसी निवासी कृष्णा कुमार यादव के साथ हुई थी। कृष्णा कुमार एएलटीटीसी में इंजीनियर हैं। शिखा एएलटीटीसी परिसर स्थित आवास में अपने पति के साथ रहती हैं। वह पशु-पक्षियों की सेवा करने के लिए ही नौकरी कर रही हैं। वह दिल्ली मेरठ हाईवे स्थित एक निजी कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।

बचपन से कर रहीं हैं सेवा

शिखा ने बताया कि बचपन से ही उन्हें पशु-पक्षियों की सेवा करने में दिलचस्पी थी। पशु-पक्षी की सेवा में पूरा ध्यान लगाने की वजह से उनके स्वजन उनसे नाराज रहने लगे, मगर उन्होंने पशु-पक्षियों की सेवा करनी नहीं छोड़ी। वह चोरी-छुपे घर में रखा भोजन बेसहारा पशु का खिला आती थीं।

जगह-जगह रखे घोंसले

वह हर साल पक्षियों के लिए सड़क के किनारे पेड़ों पर जगह-जगह घोंसले रखती हैं। सुबह-शाम वह पक्षियों को अनाज और पानी रखती हैं। उनके घर के सामने खाली भूमि पर कई प्रजाति के पक्षी आ जाते हैं। उनके घर के बाहर 30 कुत्ते रहते हैं। इन कुत्तों की नसबंदी कराकर उनके रहने का इंतजाम किया हुआ है। वह सुबह, दोपहर व शाम को उनके भोजन की व्यवस्था करती हैं।

भूखी और बीमार गाय की सूचना पर दौड़ पड़ती हैं शिखा

जनपद में कही से भी गाय के बीमार होने की सूचना मिलने पर वह गाड़ी लेकर दौड़ पड़ती है। इसके बाद पशु पालन विभाग को सूचना देकर गाय का उपचार कराती हैं। ठीक होने तक उसकी देख-रेख करती हैं। वह रोज सुबह और शाम के समय सड़क पर घूम रहे बेसहारा गौवंश को भोजन खिलाने के लिए निकल जाती हैं।

देखते ही पहचान लेते हैं पहचान लेते हैं पशु

शिखा को देखते ही कुत्ते, बंदर व गाय पहचान लेते हैं। कुत्ते उनकी गाड़ी को देखते ही उनके पास आ जाते हैं। बंदर भी उन्हे पहचान लेते हैं। बंदर उनके पास बैठकर केले खाते हैं। एएलटीटीसी में करीब 450 मोर रहते हैं। मोर बीमार भी हाे जाते हैं, लेकिन वह इलाज भी करती हैं। अब तक वह 150 मोर का इलाज करा चुकी हैं।

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