बुर्के से बाहर निकल इल्म से बदल रही महिलाओं की तकदीर

दिल्ली से सटे गाजियाबाद में तकरीबन 320 महिलाएं घर की कैद और बुर्के की बंदिश को तोड़ तालीम ले रही हैं। कुछ ने घर में विरोध भी झेला लेकिन अपने हित को आगे रख विरोध को परास्त किया।

By JP YadavEdited By: Publish:Fri, 19 Feb 2021 08:01 AM (IST) Updated:Fri, 19 Feb 2021 08:01 AM (IST)
बुर्के से बाहर निकल इल्म से बदल रही महिलाओं की तकदीर
इस्लाम कभी ऐसा नहीं कहता कि बुर्का पहनाकर घर बैठा लें, महिलाओं को शिक्षित नहीं करें।

गाजियाबाद [हसीन शाह]। अफसाना तालीम हासिल कर, अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थीं। लेकिन बुर्के जैसी रुढ़िवादी परंपराओं ने उन्हें घर में कैद कर दिया था। लेकिन कहते हैं, चाह होती है तो देर सवेर राह भी निकल आती है। ऐसी ही राह अफसाना जैसी और भी कई मुस्लिम महिलाओं को बुर्के की बंदिश से बाहर निकालकर शिक्षा के सरोकार से जोड़ रही हैं। मुस्लिम महासभा के उत्तर प्रदेश प्रभारी हाजी नाजिम खान मुस्लिम महिलाओं व बच्चियों को बुर्के में कैद घर में बैठाने के बजाय उन्हें शिक्षा देकर आगे बढ़ाना चाहते हैं ताकि वे अपने पैरों पर खड़ी हों, देश के लिए कुछ करें। हाजी नाजिम खान कहते हैं, पर्दा तो नजरों का होता है। इस्लाम कभी ऐसा नहीं कहता कि बुर्का पहनाकर घर बैठा लें, महिलाओं को शिक्षित नहीं करें।

बगैर बुर्के ऑनलाइन कक्षा में दाखिल होने को कहा

गाजियाबाद निवासी हाजी नाजिम खान के मुताबिक महिलाओं को कैद और बुर्का से मुक्ति दिलाकर उन्हें जिंदगी में कामयाबी की राह पर लेकर जाना है, इसी मकसद के साथ कोरोना काल में मई, 2020 में महिला और बच्चियों को शिक्षित करने के लिए ऑनलाइन प्लेटफार्म तैयार किया। उन्हें बगैर बुर्के के ऑनलाइन कक्षा में दाखिल होने को कहा। खुशी की बात यह रही कि बेटियों ने इसमें रुचि दिखाई। अब तक तकरीबन 320 महिलाएं घर की कैद और बुर्के की बंदिश को तोड़ तालीम ले रही हैं। कुछ ने घर में विरोध भी झेला, लेकिन अपने हित को आगे रख, विरोध को परास्त किया।

विरोध के बाद भी नहीं रुकीं

अफसाना, शाहीन खातून बुर्का छोड़ तालीम हासिल कर रहीं ऐसी तमाम मुस्लिम महिलाएं कहती हैं कि पर्दे की वजह से हमें पढ़ाई बंद करनी पड़ी थी। परिवार वालों की सख्त हिदायत थी कि घर से बाहर पांव नहीं रखना है, लेकिन आज हम शिक्षित हो रहे हैं। बुर्का पहनना छोड़, पढ़ाई के साथ आगे बढ़ रहे हैं। हर मुस्लिम महिला, बेटी को संदेश देती हैं कि इस्लाम में कहीं भी शिक्षा हासिल करने पर पाबंदी नहीं है।

हाजी नाजिम खान (उत्तर प्रदेश प्रभारी, मुस्लिम महासभा) का कहना है कि मेरी इस मुहिम का बस यही मकसद है कि मुस्लिम महिलाएं पढ़-लिखकर अफसर बनें। वह पर्दे या बुर्के की बंदिश में रहकर घर में कैद न हों। बगैर बुर्का के भी घर से बाहर निकलें और देश का नाम रोशन करें।

निश्शुल्क कर रहे हैं सुशिक्षित

महिला व बच्चियों की तालीम के लिए शिक्षकों को भी जोड़ा हुआ है। विशेष बात यह है कि उन शिक्षकों ने भी इस पहल में साथ दिया। कई शिक्षक निश्शुल्क भी सहयोग कर रहे हैं। मई, 2020 से शुरू हुई आनलाइन शिक्षा अभी भी जारी है। सभी को वैक्सीन लगने के बाद वह आफलाइन शिक्षा शुरू कर देंगे। महिलाएं बगैर बुर्का व पर्दा के पुरुष शिक्षकों से आनलाइन तालीम ले रही हैं।

वहीं, हाफिज खलील अहमद (मोहतमिम, मदरसा दारूल उलूम सादिया) के मुताबिक, कुरान व हदीस में कहीं भी बुर्के का जिक्र नहीं है। बुर्का न पहनने से कोई इस्लाम से बाहर नहीं हो जाता है। लेकिन महिलाओं को सलीके से रहना चाहिए।

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