एक साथ उठीं तीन अर्थियां तो रो पड़ा बांस झरना गांव

गांव में नहीं सुलगे चूल्हे घायलों के घरों पर भी रही भीड़ आगरा में भर्ती घायलों के स्वजनों का भी रो-रोकर बुरा हाल।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 26 Jul 2021 06:42 AM (IST) Updated:Mon, 26 Jul 2021 06:42 AM (IST)
एक साथ उठीं तीन अर्थियां तो रो पड़ा बांस झरना गांव
एक साथ उठीं तीन अर्थियां तो रो पड़ा बांस झरना गांव

संवाद सहयोगी, टूंडला: गांव बांस झरना में रविवार की सुबह करंट से मचे कोहराम के बाद शाम को जब तीन जवान मजदूरों की अर्थियां उठीं तो पूरा गांव रो पड़ा। हादसे के बाद घरों में चूल्हे नहीं सुलगे और हर तरफ मातम पसरा रहा। पोल लगाते समय करंट से जान गंवाने वाले लोगों के घरों के बाहर सांत्वना देने वालों की भीड़ लगी थी। करंट से झुलसे आधा दर्जन लोगों के घरवाले उनकी जान की दुआ मांग रहे थे। गमगीन माहौल में तीनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया।

तहसील मुख्यालय से लगभग 16 किलोमीटर दूर स्थित बांस झरना गांव के युवा कांच कारखानों में मजदूरी करते हैं। रविवार को काम बंद होने के कारण गांव में ही लोग रहते हैं। इसीलिए सुबह बांकेलाल के खेत पर विद्युत पोल लगाया जा रहा था। इसी बीच हादसा हुआ। तीन लोगों की मौत की खबर लगते ही गांव के लोग पोस्टमार्टम गृह पर पहुंच गए और गांव में सिर्फ महिलाएं और बच्चे ही रह गए थे। शाम साढ़े छह बजे गांव वाले महाराज सिंह, रामब्रज और केशव सिंह के शव लेकर पहुंचे तो गांव में चीख-पुकार मच गई। हर कोई उस घड़ी को कोस रहा था जब बांकेलाल के सबमर्सिबल पर पोल खड़ा करने का काम शुरू हो रहा था। देर शाम अलग-अलग खेतों पर तीनों का अंतिम संस्कार कर दिया। कारखाने की छुट्टी नहीं होती तो बच जाती जान :

स्वजनों की जुबां पर एक ही बात थी अगर कारखाने में आज काम चलता तो तीनों जिदा बच जाते। महाराज, केशव एवं रामब्रज गांव में ही कांच के कारखाने में काम करते थे, लेकिन रविवार को छुट्टी थी, ऐसे में यह काम पर नहीं गए। सुबह जब ग्रामीणों ने झूलते हुए तारों की समस्या बताई तो यह तीनों भी मदद के लिए पहुंच गए। अगर रविवार को कारखाने की छुट्टी नहीं होती तो शायद यह सुबह ही काम पर निकल जाते।

अधिकारी सुन लेते तो नहीं होता हादसा :

ग्रामीणों का कहना था कि बिजली अधिकारियों से कई बार शिकायत की, लेकिन अधिकारियों ने सुनवाई नहीं की। अगर अधिकारी पहले ही सुन लेते तो ग्रामीण खुद-ब-खुद तारों को ऊंचा करने की जद्दोजहद नहीं करते तो ऐसे में यह हादसा भी नहीं हो पाते। जर्जर पोल से झाकती सरियों पर नहीं गई निगाह :

बताया जाता है जिस सीमेंटेड पोल से विद्युत तारों को ऊंचा किया जा रहा था, उसे ग्रामीणों ने ठीक से नहीं देखा था। सीमेंटेड पोल में ऊपर सरिया निकली थी तथा बीच-बीच में भी सरिया निकली थी। माना जा रहा है इन सरियों में ही करंट दौड़ा, जिसने ग्रामीणों को अपनी चपेट में ले लिया। अब कौन करेगा मासूमों की देखरेख :

30 वर्षीय महाराज सिंह की तीन बेटियां हैं, जिनकी उम्र अभी कम है। महाराज सिंह की मौत के बाद परिवार का पालन पोषण करने वाला भी कोई नहीं। ऐसे में उसकी बेटियों को देख कर हर कोई कह रहा था कि अब बच्चों की देखभाल कौन करेगा। वहीं केशव सिंह की कुछ वर्ष पहले ही शादी हुई है। उसके एक वर्ष का बेटा है। घर में सभी स्वजन रो रहे थे तो बेटा भी अक्सर रो उठता, लेकिन जिसने अभी तक पिता को ठीक से समझा न हो, वह पिता का प्यार क्या समझेगा? वहीं रामब्रज अविवाहित था।

दोस्त थे केशव व रामब्रेश

केशव(25) व रामब्रेश (24) हम उम्र होने के कारण दोस्त थे। काम पर भी दोनों साथ ही जाते थे। हालांकि अभी रामब्रेश की तो शादी भी नहीं हुई थी। दोनों जहां भी जाते थे साथ ही जाते थे, यही कारण रहा कि मौत का झपट्टा पड़ने तक दोनों साथ ही रहे। ग्रामीण विद्युत पोल से तार को ऊंचा करने का प्रयास कर रहे थे। सीमेंटेड पोल में जगह-जगह सरिया निकली हुई थी, इससे ही शायद विद्युत करंट दौड़ा। पूरे मामले की जानकारी कर रहे हैं।

-डा.गजेंद्र पाल सिंह

तहसीलदार

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