टूंडला में त्रिकोणीय संघर्ष, हर दल ने झोंकी ताकत -फोटो 11

भाजपा ने झोंकी पूरी ताकत सीएम से केंद्रीय मंत्रियों की दनादन सभाएं बसपा और सपा सीधे संपर्क में जुटे।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 31 Oct 2020 06:16 AM (IST) Updated:Sat, 31 Oct 2020 06:16 AM (IST)
टूंडला में त्रिकोणीय संघर्ष, हर दल ने झोंकी ताकत  -फोटो 11
टूंडला में त्रिकोणीय संघर्ष, हर दल ने झोंकी ताकत -फोटो 11

- भाजपा ने झोंकी पूरी ताकत, सीएम से केंद्रीय मंत्रियों की दनादन सभाएं

- बसपा और सपा सीधे संपर्क में जुटे, सपा की कोई बड़ी जनसभा नहीं

डा.राहुल सिघई, फीरोजाबाद: टूंडला विस(आरक्षित) सीट के उपचुनाव में हालात त्रिकोणीय संघर्ष के बन चुके हैं। 21 साल बाद जीती सीट को बरकरार रखने की भाजपा की चुनौती है, वहीं बसपा जातीय गणित साध कर सीट को वापस कब्जाना चाहती है। सपा ने भले ही एक भी जनसभा नहीं की, लेकिन अंदरखाने वोटरों को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। नामांकन खारिज होने के चलते कांग्रेस मैदान से बाहर हैं।

टूंडला विस क्षेत्र में जाटव, धनगर और चक वोट निर्णायक स्थिति में हैं। 2017 के चुनाव में प्रो एसपी सिंह बघेल (धनगर) ने बसपा से लगातार दो बार के विधायक राकेश बाबू को करारी शिकस्त दी थी। भाजपा ने जातीय समीकरण साधते हुए अबकी बार एटा के प्रेमपाल सिंह धनगर को मैदान में उतारा है। मुख्यमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्रियों तक की लगातार जनसभाएं हुई। वहीं पार्टी कार्यकर्ताओं को एकजुट करने के लिए प्रदेश अध्यक्ष और महामंत्री संगठन तीन बार आ चुके हैं। वहीं बसपा ने संजीव चक को मैदान में उतारा है जो खुद के लोकल होने को बड़ा हथियार मान रहे हैं। बसपा की नजर अपने परंपरागत वोट के साथ चक वोट पर। वहीं बसपा के पूर्व कैबिनेट मंत्री नकुल दुबे ब्राह्मण वोट बैंक को लुभाने में लगे हैं। सपा प्रत्याशी महाराज सिंह धनगर पार्टी के वोटरों के साथ साथ स्वजातीय वोट बैंक को लुभा रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी के बाहरी प्रत्याशी होने को लेकर वे जातीय वोट बैंक को अपनी तरफ मान रहे है। आखिरी वक्त तक मतदाता चुप्पी साधे हैं और सियासी दल अपने जातीय समीकरण साधने में जुटे हैं।

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21 साल बाद जीत की साख बचाने की चुनौती

टूंडला सीट पर 1996 में भाजपा पहली बार जीती थी। 21 साल बाद 2017 में भाजपा ने 56 हजार से ज्यादा वोट से जीत हासिल की। प्रो एसपी सिंह बघेल को जीत का इनाम देकर कैबिनेट मंत्री बनाया गया। - इस्तीफे से खाली हुई थी सीट

विधायक प्रो. बघेल को पार्टी ने 2019 लोस का चुनाव आगरा से लड़ाया। उनके चुनाव जीतने के बाद सीट खाली हुई थी।

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