बलिदान की गौरव गाथा कह रहा इमली का बूढ़ा पेड़

संवाद सहयोगी बिदकी क्षेत्र से छह किलोमीटर दूर पारादान एक ऐसा स्थान जो मातृभूमि की भक्ति

By JagranEdited By: Publish:Wed, 04 Aug 2021 06:44 PM (IST) Updated:Wed, 04 Aug 2021 06:44 PM (IST)
बलिदान की गौरव गाथा कह रहा इमली का बूढ़ा पेड़
बलिदान की गौरव गाथा कह रहा इमली का बूढ़ा पेड़

संवाद सहयोगी, बिदकी : क्षेत्र से छह किलोमीटर दूर पारादान एक ऐसा स्थान जो मातृभूमि की भक्ति में शीश कुर्बान करने वाले देशभक्तों का गवाह है। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में देश को गुलामी से मुक्त कराने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध लड़ा गया। क्रांतिकारियों के दल की अगुवाई करते हुए ठाकुर जोधा सिंह अटैया ने फिरंगियों को देश छोड़ने का नारा देकर आंदोलन चलाया। बात 28 अप्रैल 1857 की है जब रसूलपुर गांव निवासी ठाकुर जोधा सिंह अटैया और उनके 51 क्रांतिकारी साथियों को कर्नल क्रस्टाइल ने पारादान गांव में स्थित इमली के पेड़ पर फांसी से लटका दिया। क्रांतिकारियों के शव 28 दिन तक इमली के पेड़ में लटकते रहे। बाद में कंकाल को उतार कर शिवराजपुर गंगा घाट पर अंतिम संस्कार किया गया। विकसित हुआ शहीद स्थल

आजादी के इतिहास का गवाह बावन इमली शहीद स्थल का विकास उतना नहीं हो पाया जिसका वह हकदार है। वर्ष 2009 में शहीद स्थल को विकसित करने के लिए पर्यटन विभाग ने वन विभाग को 55 लाख रुपये की धनराशि दी इसमें शहीद स्थल की चाहारदीवार, बैठक कक्ष का जीर्णोद्धार, नाले का निर्माण, प्राकृतिक पर्यावास के लिए टीलों का निर्माण के साथ नेचर ट्रेल का निर्माण। चार पार्क बनाने के साथ झूले लगाए गए। दो पुलिया सीसी रोड निर्माण, नलकूप पानी टंकी का निर्माण, चौकीदार कक्ष लोटस पांड का निर्माण।

वर्ष 2016 में स्वदेश दर्शन योजना के तहत भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने 30 लाख रुपये दिए हैं। इससे सोलर लाइट, बेंच, कुर्सी और कूड़ेदान लगाए गए हैं। बावनी इमली शहीद स्थल पर जिले भर के क्रांतिकारियों की जयंती मनाईं जाएं। ताकि इसके बारे में लोग परिचित हो सकें। आजादी के इस तीर्थ स्थल को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जाए।

वेदप्रकाश मिश्र, वरिष्ठ साहित्यकार

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