चाक की रफ्तार तेज, चाइनीज को टक्कर देंगे मिट्टी के दीये

संवाद सहयोगी खागा घर मंदिर व व्यापारिक प्रतिष्ठानों को रोशनी से जगमगाने का त्योहार दीपाव

By JagranEdited By: Publish:Wed, 04 Nov 2020 05:45 PM (IST) Updated:Thu, 05 Nov 2020 02:41 AM (IST)
चाक की रफ्तार तेज, चाइनीज को टक्कर देंगे मिट्टी के दीये
चाक की रफ्तार तेज, चाइनीज को टक्कर देंगे मिट्टी के दीये

संवाद सहयोगी, खागा: घर, मंदिर व व्यापारिक प्रतिष्ठानों को रोशनी से जगमगाने का त्योहार दीपावली नजदीक है। त्योहार को महज दस दिन और शेष हैं। बाजार की रौनक बता रही है कि हंसी-खुशी का त्यौहार, हमारी जिदगी में कितना महत्व रखता है। मिट्टी के दीये व बर्तन बनाने वाले कुम्हार, कुनबे के साथ इस काम में लगे हुए हैं। चाइनीज आइटम का विरोध व ईको फ्रेंडली त्योहार मनाने की परिपाटी से इनको अच्छे खासे कारोबार की उम्मीद है।

मिट्टी के बर्तन और दीयों का महत्व धीरे-धीरे बढ़ने लगा है। प्लास्टिक, फोम, थर्माकोल से लोग दूरी बना रहे हैं। इसका सीधा प्रभाव मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारोबार पर हो रहा है। कोरोना की वजह से सुस्त पड़ा कारोबार, दिवाली नजदीक होने से रफ्तार में है। त्योहार से पहले अधिकाधिक मिट्टी के दीये व भगवान गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति बनाने में कुम्हार परिवार लगे हुए हैं। मिट्टी के दीये व बर्तन बनाने के काम में मेहनत, हुनर, संसाधन के साथ ही तमाम तरह की समस्याएं भी सामने आ रही हैं। इस काम में लगे लोगों का कहना था सरकार से तमाम तरह की उम्मीदें थी, अभी तक वह पूरी नहीं हो सकी हैं। सरकार द्वारा इस कला को विकसित करने के लिए वायदे तो कई किए गए, पूरा करने की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। मिट्टी के गणेश-लक्ष्मी बनाने वाले परिवार लक्ष्मी की कृपा से दूर होते जा रहे हैं। बुजुर्ग बताते हैं कि खाना पकाने में सबसे उत्तम बर्तन मिट्टी का माना जाता है। पीतल, तांबा, कांसा, स्टील व अल्युमुनियम उसके बाद आता है। स्वास्थ्य समस्याओं को देखते हुए लोगों का झुकाव एक बार फिर से मिट्टी के बर्तनों की ओर है। शादी-विवाह के आयोजन हो या फिर चाय-नाश्ता की दुकानें सभी जगह मिट्टी के गिलास का प्रयोग लोग करने लगे हैं। हरदों गांव निवासी इन्दल प्रजापति का कहना था अपने पूर्वजों का व्यवसाय वह संभाल तो रहे हैं, आने वाली पीढ़ी नहीं लगता है कि इसे वर्षों तक चला पाएगी। सिठियानी गांव के रहने वाले रविकरन प्रजापति का भी यही मानना था। कारोबार में जिस प्रकार मेहनत की जाती है, उसका पूरा लाभ नहीं मिलता है। एक दौर था, जब लोग मिट्टी के बर्तन, खिलौने व दीयों की बिक्री से साल भर तक परिवार का भरण-पोषण करते थे। बाजार में प्लास्टिक क्राकरी, फाइबर आने के बाद सीधा असर मिट्टी के बर्तन बनाने वाले लोगों के ऊपर पड़ रहा है। मिट्टी के बर्तन स्वास्थ्य व पर्यावरण दोनों के लिए लाभदायक हैं, इसके बावजूद इस कारोबार को मुफीद ऊंचाइयां नहीं मिल सकी हैं। हरी प्रजापति ने बताया कि सरकार ने कुम्हारी कला को बढ़ावा देने के लिए जो योजनाएं संचालित की है, उनका शत-प्रतिशत लाभ नहीं मिल रहा है। मिट्टी उपलब्ध कराने के लिए तालाबों के पट्टे तक आसानी से नहीं मिलते हैं।

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