तीन घंटे मिलतीं सेवाएं, 21 घंटे लटकता रहता ताला

संवाद सूत्र नरैनी सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सेवा दूरस्थ इलाकों तक पहुंचे इसके लिए सरकार सीएचसी

By JagranEdited By: Publish:Wed, 16 Jun 2021 07:06 PM (IST) Updated:Wed, 16 Jun 2021 07:41 PM (IST)
तीन घंटे मिलतीं सेवाएं, 21 घंटे लटकता रहता ताला
तीन घंटे मिलतीं सेवाएं, 21 घंटे लटकता रहता ताला

संवाद सूत्र, नरैनी : सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सेवा दूरस्थ इलाकों तक पहुंचे इसके लिए सरकार सीएचसी-पीएचसी का संचालन कर रही है। लेकिन मनमानी व अव्यवस्थाओं के चलते ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में उपचार नहीं मिल पा रहा है। सातों धरमपुर गांव में 22 साल पहले न्यू पीएचसी खोली गई थी, इस अस्पताल में 40 गांवों के उपचार की जिम्मेदारी है। अस्पताल की बदतर स्वास्थ्य सेवाओं के कारण अस्पताल सिर्फ तीन घंटे खुलता है और 21 घंटे तक ताले में कैद रहता है।

वर्ष 1998 में पीएचसी का संचालन शुरू हुआ था। कुछ सालों तक तो सेवाएं ठीक रहीं लेकिन इसके बाद से अस्पताल जन अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा। वर्तमान में यहां की सेवाएं बेहद खराब है। यहां तैनात एक चिकित्सक हसवा पीएचसी से संबद्ध है, जबकि दूसरे कभी कभार आते हैं। ऐसी दशा में ज्यादा समय अस्पताल डाक्टर विहीन ही रहता है। यहां फार्मासिस्ट और चौकीदार अस्पताल खोलने की कवायद पूरी करते हैं। सुबह 11 बजे से दोपहर दो बजे तक अस्पताल खुलता है, लेकिन इसके बाद यहां ताला लटक जाता है। यहां न तो कोई डाक्टर रहता है और न ही कोई पैरा मेडिकल स्टाफ। अस्पताल के मात्र सो-पीस होने के कारण आसपास के झोलाछाप चिकित्सकों की बल्ले-बल्ले हैं। वह बुखार के उपचार में भी ग्लूकोज चढ़ाकर हजारों रुपये ऐंठ लेते हैं। अस्पताल में स्टाफ की स्थिति

अस्पताल में डा. देवराज व डा. खलील नसीम की तैनाती है। इसके अलावा यहां पर फार्मासिस्ट राजेंद्र कुमार व चौकीदार मइयादीन के अलावा दो स्टाफ नर्स और एक एएनएम की तैनाती है। स्टाफ स्वीकृत पदों के सापेक्ष पूर्ण है, लेकिन नियमित उपस्थिति के कारण अस्पताल की सेवाएं नहीं मिल पाती है। आज तक मरीज भर्ती नहीं

यहां पर दो बेड का अस्पताल है, लेकिन रिकार्ड के अनुसार आज तक यहां पर कोई मरीज भर्ती नहीं हुआ। अगर कोई भी गंभीर मरीज आता है तो उसे जिला मुख्यालय या तो हसवा पीएचसी भेजा जाता है। यह स्थिति कोई एक दिन की नहीं है बल्कि हर दिन यही होता है। बाहर की लिखी जाती हैं दवाएं

यहां नियमित डाक्टर तो नहीं बैठते हैं, लेकिन जब भी डाक्टर आते हैं और मरीज देखते हैं तो बाहर की दवाएं लिखते हैं। अस्पताल से दवाएं नहीं दी जाती। डाक्टर की ओर से लिखी गईं दवाएं पीपल के पेड़ के नीचे खुले मेडिकल स्टोर में ही मिलती है और कहीं नहीं मिलती। इन दवाओं भारी कमीशन का खेला चलता है। अस्पताल की कहानी ग्रामीणों की जुबानी

सातों धरमपुर का अस्पताल काफी पुराना है, लेकिन यहां सुविधाएं धीरे-धीरे खत्म हो रही है। देखरेख के अभाव में कर्मचारी भी मनमानी करते हैं सुधार किया जाना चाहिए।

उदयभान मुगरीबाग सुबह से शाम तक लोग अस्पताल के चक्कर काटते हैं, कि उपचार मिल जाए लेकिन अक्सर यहां पर डाक्टर या कर्मचारी नहीं रहते हैं। जिससे लोगों को झोलाछाप की शरण में जाना पड़ता है।

राहुल सिंह, सातों अस्पताल हाल ही हेल्थ एवं वेलनेस सेंटर के रूप में तब्दील किया गया है। बिल्डिंग के रंग रोगन करने से सुधार नहीं होता। सुधार के लिए सुविधाएं भी बढ़नी चाहिए और कर्मचारी भी।

बच्चा दुबे नरैनी सातों अस्पताल से आसपास के 40 गांव जुड़े हैं, लेकिन यह अस्पताल ग्रामीणों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहा है। जबकि यहां के लोगों को सेवाएं मिले इसके लिए सरकार पैसा खूब खर्च कर रही है।

शिवशंकर नरैनी अस्पताल बना है तो सेवाएं भी मिलनी चाहिए। किसी भी दशा में यह नहीं बर्दास्त किया जाएगा कि अस्पताल ही न खोला जाए। प्रकरण का संज्ञान लेकर जांच की जाएगी और दोषियों पर कार्रवाई तय की जाएगी।

डा. गोपाल माहेश्वरी, सीएमओ

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