सच्चा मित्र औषधि के समान

स्वार्थ की भावना से ग्रसित व्यक्ति किसी का संमित्र नहीं हो सकता। सच्चा मित्र तो औषधि के समान होता ह

By JagranEdited By: Publish:Wed, 21 Oct 2020 06:02 PM (IST) Updated:Wed, 21 Oct 2020 06:02 PM (IST)
सच्चा मित्र औषधि के समान
सच्चा मित्र औषधि के समान

स्वार्थ की भावना से ग्रसित व्यक्ति किसी का संमित्र नहीं हो सकता। सच्चा मित्र तो औषधि के समान होता है, जो सभी प्रकार की बाधाओं से सहायक होता है। शास्त्रों में मित्र के लक्षण बताए गए हैं कि मित्र वही है जो आपत्ति व सुख में समानता का व्यवहार करे, पापों से बचाकर हमारे हित की योजना बनाए, ऐसा मित्र मिलना दुर्लभ तो नहीं लेकिन दुरूह अवश्य है। बुधवार को जागरण में प्रकाशित कहानी में वर्णित रूपेश कुमित्र की तरह सिर्फ अपना हित देखता है। ऐसा मित्र पैर में बंधी चक्की के समान है। जो निरंतर अवनति की ओर ही ले लाएगा। जिस प्रकार पारस जैसे मित्र का सानिध्य पाकर लोहा सोना बन जाता है। उसी भांति संमित्र सदैव ही मान सम्मान बढ़ाता है। इसके विपरीत कुमित्र काजल की तरह काला तो होता ही है, संसर्ग में आने वालों को भी कलंकित कर देता है। हमारा इतिहास संमित्रों के उदाहरणों से भरा पड़ा है। संसार में जब मित्रता का उदाहरण दिया जाता है, तब कृष्ण व सुदामा का नाम आता है। मित्रता में प्राप्ति की आकांक्षा नहीं होती है। जहां आकांक्षा है वहां स्वार्थ है। स्वार्थ की आधारशिला पर टिकी मित्रता ²ढ़ नहीं होती। इतिहास में सुग्रीव की राम से व चाणक्य की चंद्रगुप्त से मित्रता जैसे अनेक उदाहरण हैं।

- योगेश तिवारी, प्रधानाचार्य सीपीवीएन इंटर कॉलेज, कायमगंज।

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