जनपद को बेसहारा बच्चों का एक आश्रय स्थल तक नसीब नहीं

जागरण संवाददाता फर्रुखाबाद सांसद से विधायक तक सब सत्तरूढ़ दल से और केंद्र से प्रदेश तक अपन

By JagranEdited By: Publish:Fri, 23 Jul 2021 10:56 PM (IST) Updated:Fri, 23 Jul 2021 10:56 PM (IST)
जनपद को बेसहारा बच्चों का एक आश्रय स्थल तक नसीब नहीं
जनपद को बेसहारा बच्चों का एक आश्रय स्थल तक नसीब नहीं

जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : सांसद से विधायक तक सब सत्तरूढ़ दल से और केंद्र से प्रदेश तक अपनी सरकार के बावजूद जनपद को बेसहारा बच्चों के लिए एक अदद आश्रय घर तक नसीबी नहीं है। हालांकि यह स्थिति तो विगत लगभग दस वर्षों से है, लेकिन कोरोना महामारी के दौरान जनपद के लगभग 72 बच्चों के माता-पिता या दोनों के काल के गाल में जा समाने की स्थिति में यह कमी और बड़ी हो गई है। ऐसे में इन बच्चों के बेहतर लालन-पालन को लेकर समस्या स्वाभाविक है। कस्तूरबा विद्यालयों के बंद होने के चलते बालिकाओं के छात्रावास भेजने का भी विकल्प बंद है। कोरोना महामारी के दौरान बेसहारा हुए बच्चे अपने स्वजन या बड़े भाई बहनों के साथ ही रह रहे हैं। शासन की ओर से 50 बच्चों के अभिभावकों के खातों में चार हजार रुपये प्रति की दर से धनराशि भेजे जाने से कुछ राहत जरूर मिली है। जुलाई, अगस्त व सितंबर की सहायता राशि के तौर पर 12-12 हजार रुपये भेजे जाने से अभिभावक खुश हैं। बाल संरक्षण अधिकारी सचिन सिंह के प्रयास से अधिकांश बच्चों का एडमिशन स्कूलों में भी करा दिया गया है। योजना के तहत अन्य सुविधाएं भी शीघ्र मिलने की संभावना है।

केस-एक

ग्राम बरौन के शमशेर नगर निवासी ऋषिपाल की विगत 21 सितंबर को कोरोना से मृत्यु हो गई थी। उनके पांच में चार बच्चे 18 वर्ष से कम आयु के हैं। कृषि योग्य भूमि भी नहीं है। परिवार के पास आय का कोई श्रोत न होने से हालत काफी दयनीय है। पत्नी मार्गश्री के कांधे पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी है। इस विपत्ति में पड़ोसियों या रिश्तेदारों ने भी कोई खास मदद नहीं की। गुरुवार को चारों बच्चों को बाल सेवा योजना के तहत तीन-तीन माह की धनराशि के तौर पर कुल 48 हजार रुपये की धनराशि मांग के खाते में भेजी गई। धनराशि आने से मार्गश्री की खुशी का ठिकाना नहीं है।

केस-दो

इसी प्रकार हाथीखाना निवासी एक निजी अस्पताल मे पैथालाजिस्ट का काम देखने वाले अरुणपाल की विगत 19 अप्रैल को कोरोना से मौत के बाद उनके चार छोटे बच्चों के भरण पोषण की जिम्मेदारी विधवा रन्नो देवी के सिर आ पड़ी। पति की अचानक मौत के बाद रन्नो देवी के सामने मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हो गया। रन्नो देवी को भी योजना के तहत 48 हजार रुपये एक मुश्त मिल गए हैं। इससे फिलहाल उनकी कठिनाइयों काफी कम हुई हैं। उन्हें इस मुसीबत की घड़ी में यह बड़ा सहारा मिला है। केस-तीन

मोहल्ला रामनगर निवासी महिला कहती हैं कि दो माह पहले पति की कोरोना से मौत हुई थी। चार साल की बेटी व दो साल के बेटे के पालन-पोषण की जिम्मेदारी ससुर निभा रहे हैं। दो देवर छोटे हैं, जबकि दो की मृत्यु हो चुकी है। पति ही अकेले कमाने वाले थे। कल दोनों बच्चों के पालन-पोषण के लिए आठ हजार रुपये खाते में आ गए। इन रुपयों से काफी सहारा मिलेगा। ससुर बोले कि इन रुपयों से नाती व नातिन की परवरिश में मदद तो बहुत मिलेगा, लेकिन चिता यह है कि कहीं मदद मिलना बंद न हो जाए।

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