ले चल पीर की सदाओं के बीच पहुंचा शेखजी का डोला
संवाद सूत्र कमालगंज सौहार्द की मिसाल शेखपुर की ऐतिहासिक दरगाह-ए- मखदूमियां पर मंगलवार क
संवाद सूत्र कमालगंज : सौहार्द की मिसाल शेखपुर की ऐतिहासिक दरगाह-ए- मखदूमियां पर मंगलवार को हजरत शेख मखदूम के 697वें उर्स में शेखजी का डोला छड़ी बाजों की छड़ियों के साए में ले चल पीर की सदाओं के बीच दरगाह पर लाया गया। मजार शरीफ के तवाफ के बाद खिरका शरीफ उतारा गया। दफ बजाकर पढ़ी गई रुबाई सुनकर सज्जादानशीन अजीजुल हक उर्फ गालिब मियां होश में आये। उन्होंने दरगाह पर चल रहे उर्स के कुल कुल शरीफ में हिस्सा लिया और देश में अमनो-अमान व मुल्क की खुशहाली के लिए दुआए खैर की। दरगाह पर दिन भर गुलपोशी व चादरपोशी के लिए अकीदतमंदों का तांता लगा रहा।
भोजपुर स्थित चिल्लागाह से करीब चार किलोमीटर लंबे ऊबड़-खाबड़ रास्ते से होते हए डोला शेखपुर दरगाह पहुंचा। दरगाह पर अदब और ऐतराम के साथ 18वें सज्जादानशीन गालिब मियां के जिस्म से खिरका शरीफ उतारा गया और उन्हें मजार के उत्तरी दरवाजे के सामने लिटाया गया। लतीफ कमालगंजवी ने दफ बजा कर हजरत बख्तियार काकी फारसी की रुबाई पढ़ी। जिसे सुनकर वह होश में आए और कुल शरीफ में शिरकत की। मौलाना मुबीन नूरी, मोहसिन शमसी, उवैस खां, रवि दुबे, कुलदीप कुशवाह, दिलीप गुप्ता, सालाउद्दीन पहलवान आदि ने व्यवस्था देखी।
मौलाना एहसानुल हक ने हजरत शेख मखदूम के इतिहास पर रोशनी डालते हुए कहा उनका जन्म बगदाद में शाही खानदान में हुआ था। वह बड़े हुए तो मुल्क शीस्तान की बादशाहत को ठुकराकर वह रूहानियत की तलाश में निकल पड़े। सन् 1350 में वह गंगा नदी के किनारे भोजपुर आये। यहीं पर सन 1351 में उनका विसाल हो गया। उनकी वसीयत के मुताबिक शेखपुर में उन्हें सुपर्दे खाक किया गया। कभी अकबर ने भी यहां लगाई थी हाजिरी
मुगलिया शासन के दौरान बादशाह अकबर ने भी शेख मखदूम की दरगाह पर हाजिरी लगाई थी। अकबर ने दरगाह पर एक विशालकाय गेट बनवाया था। यह गेट अभी मौजूद है।