अब नहीं सुनाई देता है 'डाकिया आया है' का शोर

जागरण संवाददाता फर्रुखाबाद आदरणीय माता जी व पिता जी हम सब यहां कुशलपूर्वक हैं और आश्

By JagranEdited By: Publish:Fri, 08 Oct 2021 08:46 PM (IST) Updated:Fri, 08 Oct 2021 08:46 PM (IST)
अब नहीं सुनाई देता है 'डाकिया आया है' का शोर
अब नहीं सुनाई देता है 'डाकिया आया है' का शोर

जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : 'आदरणीय माता जी व पिता जी हम सब यहां कुशलपूर्वक हैं और आशा करते हैं कि आप सब भी कुशलपूर्वक होंगे..।' अब आधुनिकता के दौर में यह पंक्तियां पढ़ने को नहीं मिलती हैं। पहले अपनों की कुशलक्षेम पूछने का साधन चिठ्ठियां (पत्र) हुआ करती थीं। चिठ्ठियों के माध्यम से ही हम एक-दूसरे की खैर-खबर पूछते थे। चिठ्ठी पढ़ते-पढ़ते एक वारगी तो ऐसा लगता था कि चिठ्ठी लिखने वाला सामने ही खड़ा है। चिठ्ठियों से भावनाएं जुड़ी होती थीं। टेलीफोन, मोबाइल और ई-मेल की आधुनिकता में अब चिठ्ठी गुजरे जमाने की बात हो गई है। अब डाकघरों से कार्यालयों के कामकाज के लिए प्रपत्र या फिर रक्षाबंधन पर राखियां भेजी जाती हैं। गली, मोहल्लों व मुख्यमार्गों पर लटकने वाले लेटर बाक्स भी अब दिखाई नहीं देते। बुजुर्ग कहते हैं कि चिठ्ठियों में अपनापन झलकता था। यही कारण था जब भी डाकिया मोहल्ले में आता था तो उसे देखकर बच्चे तक शोर मचाने लगते थे कि डाकिया आया है। चिट्ठी लाया है।

'अस्सी व नब्बे के दशक में हालचाल लेने के लिए टेलीफोन व चिट्ठी ही माध्यम थे। धीरे-धीरे मोबाइल व इंटरनेट ने चिट्ठी के चलन को बंद कर दिया। मुझे याद है वर्ष 1989 में मैं आर्डिनेंस फैक्ट्री कानपुर में कार्यरत था और नेकपुर चौरासी में रहने वाले मेरे साढ़ू रामप्रकाश कटियार ने मुझे चिठ्ठी भेजी थी, जिसमें उनके बेटे की शादी का निमंत्रण था।'

आनंद कटियार, निवासी आवास विकास 'पहले और अब के दौर में बहुत बदलाव आया है। पहले चिठ्ठियों के माध्यम से एक-दूसरे का हालचाल लिया जाता था और अब वाट्सअप व ई-मेल के जरिए मैसेज भेजे जाते हैं। मेरी बहन सुनीता लखनऊ में रहती हैं, जिन्होंने आखिरी चिट्ठी मुझे 1993 में लिखी थी। अब तो रोजाना उससे मोबाइल पर बात होती रहती है।'

ओमप्रकाश भल्ला, निवासी जोगराज 'जब चिट्ठी आती थी तो सभी लोग एकत्र हो जाते थे, जिसके बाद चिट्ठी पढ़ी जाती थी। वर्ष 1995 में एटा में रहने वाले मेरे मामा देवेंद्र मिश्रा की आखिरी चिठ्ठी घर पर आई थी। अब तो वाट्सअप पर मैसेज के माध्यम से तुरंत अपनी बात भेज सकते हैं। पहले चिठ्ठी पहुंचने में तीन से चार दिन लग जाते थे।'

आशुतोष मिश्र, निवासी अढ़तियान 'मैं कक्षा छह में था, तब मेरी बुआ कमलेशरानी निवासी कानपुर की आखिरी चिठ्ठी आई थी। मैंने पूरे परिवार को पढ़कर सुनाई, जिसमें उन्होंने कुछ परेशानी लिखी थी। अब तो मोबाइल का दौर है। चाहें आपका अपना कितना ही दूर क्यों न हो, तुरंत उसके हालचाल मिल जाते हैं। पहले ऐसा नहीं होता था। चिट्ठी ही संदेश का माध्यम थी।' सुमित कुमार, निवासी जोगराज

'आधुनिकता के दौर में अब लोगों ने चिठ्ठियों को भेजना ही बंद कर दिया है। यही कारण है कि अब पोस्टकार्ड, अंदर्देशीय पत्र आदि की बिक्री काफी कम हो गई है। कामकाज के प्रपत्र ही डाक के माध्यम से लोग भेजते हैं। इस कारण रजिस्ट्री तो खूब हो रही है।'

अरुण यादव, डाक अधीक्षक, फर्रुखाबाद

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