एकजुटता में बंधा परिवार, अपनेपन की एक रसोई में मिलता प्यार ही प्यार
जागरण संवाददाता फर्रुखाबाद आधुनिकता के इस दौर में समाज में रिश्ते बिखरते जा रहे हैं। एक
जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : आधुनिकता के इस दौर में समाज में रिश्ते बिखरते जा रहे हैं। एकजुट परिवार कम ही देखने को मिलते हैं। हालांकि अभी भी रिश्तों की मजबूत डोर से कुछ परिवार बंधे हैं और अपनेपन के एक रसोईघर में प्यार ही प्यार पनपता है। ऐसा ही एक परिवार है मोहल्ला नुनहाई के 71 वर्ष के आढ़ती सुभाषचंद्र अवस्थी का।
शुकरुल्लाहपुर के मूल निवासी सुभाषचंद्र अवस्थी आढ़ती हैं। 68 वर्षीय पत्नी मनोरमा अवस्थी के साथ मिलकर उन्होंने अपने दस सदस्यीय परिवार को आज भी प्यार के धागे से बांधकर रखा है। बड़े बेटे मनोज व छोटे पुत्र सुबोध अवस्थी को करीब 15 साल पहले कारोबार सौंपा और उनकी शादी की। दोनों बहुएं भी ऐसी आई कि परिवार में ही रम गईं। बहू-बेटे व उनके बच्चे एक ही छत के नीचे रहते हैं और एक ही रसोईघर में भोजन बनता है। राशन-पानी से लेकर घर की सारी जिम्मेदारी आज भी सुभाषचंद्र अवस्थी निभाते हैं। सुभाषचंद्र कहते हैं कि वह परिवार के महत्व को भलीभांति समझते हैं। यही बात उन्होंने अपने बेटों, बहुओं व उनके बच्चों को समझा रखी है। उनके परिवार में दस लोग हैं, लेकिन एक ही रसोईघर में आज भी भोजन पकता है। हम सब मिलकर ही भोजन करते हैं। सुख-दुख साथ निभाते हैं। आज भी राशन-पानी की जिम्मेदारी वह खुद उठाते हैं। वहीं मनोरमा अवस्थी कहती हैं कि अच्छे संस्कारों से ही आज उनका परिवार एक साथ रहता है। दोनों बहुएं उन्हें कोई काम नहीं करने देती। उन्हें खुद काम के बहाने ढूंढने पड़ते हैं। मनोज अवस्थी कहते हैं खेतीबाड़ी व बाग की देखभाल के साथ आज भी घर पापा ही संभालते हैं।
परिवार में हैं ये सदस्य
सुभाषचंद्र अवस्थी, उनकी पत्नी मनोरमा, बड़े बेटे मनोज, उनकी पत्नी शैलजा अवस्थी, प्रपौत्र अलौकिक, अविरल, छोटे पुत्र सुबोध, उनकी पत्नी कल्पना, प्रपौत्री नव्या व काव्या। एकजुट परिवार के यह हैं फायदे
एक साथ पर्व मनाते हैं, बच्चों का अकेलापन दूर होता है, परिवार में अनुशासन रहता है, कोई भी समस्या आने पर मिलजुलकर सुलझा सकते हैं, कार्यों में एक-दूसरे का हाथ बंटाना व बड़े बुजुर्गों का मार्गदर्शन भी मिलता है।