रचनाओं से गुदगुदाने वाले टाटंबरी की निजी जिदगी में भर रही उदासीनता

सेवानिवृत्ति के बाद चार साल से लंबित है विभागीय भुगतान कवि सम्मेलनों से होने वाली आय तक सिमटी दिग्गज कवि की जीविका

By JagranEdited By: Publish:Tue, 19 Oct 2021 11:29 PM (IST) Updated:Tue, 19 Oct 2021 11:29 PM (IST)
रचनाओं से गुदगुदाने वाले टाटंबरी की निजी जिदगी में भर रही उदासीनता
रचनाओं से गुदगुदाने वाले टाटंबरी की निजी जिदगी में भर रही उदासीनता

अयोध्या: बसंतनामा जैसी कृति से पूरे अंचल को गुदगुदाने वाले अवधी काव्य के सशक्त हस्ताक्षर अशोक टाटंबरी की निजी जिदगी में उदासीनता भर रही है। 2017 में यूपी उपभोक्ता संघ के केंद्र प्रभारी पद से सेवानिवृत्त हुए टाटंबरी का विभागीय देय तभी से लंबित है। उनके विभाग में पेंशन का प्रविधान नहीं है। ऐसे में, टाटंबरी के लिए इस देय की अहमियत समझी जा सकती है। उन्हें भविष्य निधि के रूप में करीब सात लाख रुपये की एक किस्त तो मिल गई, किंतु लगभग इतने का ही भुगतान 2017 से ही लंबित है। इसके पीछे यह बहाना बनाया गया कि वे पूर्व में जिस केंद्र के प्रभारी रहे हैं, उसके ठेकेदार ने केंद्र का गेहूं फूड कार्पोरेशन के गोदाम में जमा कराने की बजाय अन्यत्र बेच दिया। हालांकि इस मामले का निस्तारण उनके सेवाकाल में ही हो गया।

डिफाल्टर ठेकेदार की नियुक्ति विभागीय आरएम द्वारा किए जाने के बावजूद टाटंबरी ने केंद्र प्रभारी के तौर पर अपनी जिम्मेदारी का पूर्ण निर्वहन किया और ठेकेदार पर दबाव बनाकर गेहूं के मूल्य के साथ उसका ब्याज भी विभाग में जमा कराया। इसके लिए तत्कालीन आरएम बीपी सिंह ने विभाग के एमडी को सूचित करते हुए उन्हें क्लीन चिट भी प्रदान की। इसके बावजूद विभाग के एमडी के यहां उनके एसीपी भुगतान की फाइल वर्षो से लंबित पड़ी है। टाटंबरी के अनुसार उन्होंने जिस विभाग की दशकों तक सेवा की, उसका यह रुख संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है और यदि किसी को न्याय करने में दिलचस्पी न हो, तो वह मामले का अपने मन मुताबिक निस्तारण कर सकता है। ताकि वह आगे के न्याय के लिए कोर्ट की शरण ले सकें। विभाग से उनका अतिरिक्त सेवा के लिए नकदीकरण के मद का 3.14 लाख रुपये का भुगतान भी लंबित है और विभागीय घोषणा के अनुरूप इस भुगतान के लिए उन्हें विभागीय घाटा समाप्त होने तक इंतजार करना होगा। अवधी काव्य के क्षितिज पर मील के पत्थर माने जाने वाले आधा दर्जन से अधिक कृतियों के प्रणेता टाटंबरी की जीविका कवि सम्मेलनों से होने वाली आय पर आश्रित होकर रह गई है। उनके तीन बेटे अपने पैरों पर हैं, किंतु उन्हें स्वयं के साथ पत्नी के भरण-पोषण की चिता करनी होती है।

आहत करने वाली है उनकी उपेक्षा

समाजसेवी एवं पौराणिक महत्व की पीठ नाका हनुमानगढ़ी के महंत रामदास याद दिलाते हैं कि अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों से विभूषित और प्रतिष्ठित मंचों से अवधी की रसधार प्रवाहित करने वाले टाटंबरी ढाई दशक तक संघ के सहयोगी संगठन संस्कार भारती के जिला संयोजक भी रह चुके हैं। इसके बावजूद केंद्र एवं प्रदेश में भाजपा की सरकार रहते उनकी उपेक्षा आहत करने वाली है।

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